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बीकानेर,चिकित्सा मंत्री परसादीलाल मीणा के चिकित्सा महकमे की कमान संभालने के तुरंत बाद पूर्व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के कार्यकाल के अंतिम दिनों में कार्य व्यवस्था के तौर पर किए गए तबादलों को रद्द करने के आदेश जारी कर दिए गए। दरअसल, मुख्य रूप से रघु शर्मा कार्यकाल की चार तबादला सूचियों को निरस्त किया गया है। बताया जाता है कि मीणा को विभाग की समीक्षा के दौरान प्रतिबंध के बाद भी जमकर तबादले किए जाने का फीडबैक दिया गया था। साफ है कि यह सब तबादला नीति के अभाव और सियासी तोल-मोल के चलते हुआ। यह भी काबिले गौर है कि या तो पहले किए गए तबादले गलत थे या कार्य व्यवस्था के तहत किए गए ये तबादले निरस्त करना गलत है। वजह जो भी रही हो, प्रभावित तो डॉक्टर और मेडिकल कर्मी ही हुए। अब फिर नए सिरे से कवायद होगी और रेवड़ियां बटेंगी। हालांकि कहा तो यही जा रहा है कि कार्य व्यवस्था आधारित तबादले नहीं होंगे।

पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शिक्षकों से संवाद में सवाल किया था कि क्या तबादलों के लिए शिक्षकों को पैसे देने पड़ते हैं? इस पर शिक्षकों ने कुर्सी से खड़े होकर एक स्वर में कहा था कि हां, देने पड़ते हैं। आम जन में यह धारणा है कि शिक्षा विभाग ही नहीं, लगभग सभी विभागों में ज्यादातर तबादले सुविधा शुल्क देने के बाद ही होते हैं। तबादलों से अपनी जेबें भरने वाले शायद ही यह चाहेंगे कि राज्य में कोई तबादला नीति बने । दशकों से तबादला नीति बनाने की बात चल रही है, लेकिन ढाक के वही तीन पात।

तबादलों में डिजायर सिस्टम का बोलबाला है। सुनते हैं कि ज्यादातर विधायक-सांसदों के क्षेत्र में कलक्टर-एसपी से लेकर एसएचओ तक की पोस्टिंग संबंधित जनप्रतिनिधियों की सहमति से होती है। फिर तबादला नीति की बात ही बेमानी है। यदि मुख्यमंत्री गहलोत वाकई एक सकारात्मक पहल करना चाहते हैं और तबादलों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहते हैं, तो सबसे पहले इस डिजायर सिस्टम को खत्म करना होगा। सरकार को तबादलों में राजनीतिक दखलंदाजी को रोकने के लिए दृढ़ संकल्प लेना होगा। यह सही समय है जब विभिन्न कमेटियों की सिफारिशों वाली फाइलें सार्वजनिक कर राज्य में एक ठोस तबादला नीति बनाई जाए। वरना जनता विभिन्न मंचों से सियासी जुमले तो सुनती ही आई है।

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