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बीकानेर,रीट प्रकरण’ ने राजस्थान के अमानवीय चेहरों की नकाब उधेड़ दी है। हर कोई बेरोजगार युवाओं के नाम पर जेबें भरने में और राजनीतिक गोटियां खेलने में व्यस्त है। सरकार को युवाओं के अंधकारमय भविष्य से ज्यादा चंद ‘लुटरों’ को बचाने की चिंता है। विपक्ष को लग रहा है कि उसकी झोली में अचानक बड़ा मुद्दा आ गिरा है जो उसकी तीन साल की निष्क्रियता और आपसी फूट पर पर्दा डाल देगा। और अफसर..वे दोनों पक्षों को उलझा कर उस बंदर जैसा व्यवहार कर रहे हैं जो बिल्लियों को लड़ाकर उनकी रोटी छीनने में माहिर हैं। पिस रहे हैं तो केवल राजस्थान के बेरोजगार युवा जो हर साल नौकरी का सपना देखते हैं, सालभर मेहनत करते हैं और फिर ‘शून्य’ पर आ जाते हैं। उन्हें लगने लगा है कि आसुरी शक्तियां मिलकर उनके बदन के फटे कपड़ों तक को नोंच खाएंगी।

होने को हमारे प्रदेश में एक से एक ‘लोकप्रिय’ नेता हैं। लेकिन उनकी चिंता बजटीय घोषणाओं और दिखावटी हमदर्दी से आगे नहीं बढ़ पाती। उन्होंने और राज्य के ‘बुद्धिमान’ अफसरों ने मिलकर जैसे लक्ष्य बना रखा है कि राजस्थान के युवाओं को रोजगार देना ही नहीं है। सारे संसाधनों पर केवल उनका हक है। हर साल भर्ती खोलकर सपने दिखाए जाते हैं। लाखों युवाओं से आवेदन पत्रों और फीस के नाम पर करोड़ों रुपए ले लिए जाते हैं। फिर परीक्षाएं रद्द हो जाती है पर इन करोड़ों रुपए का कोई हिसाब नहीं देता। अपराध नेताओं और अफसरों का भुगतते हैं गरीब युवा।

अब तो यह लगता है कि प्रश्न पत्रों को लीक भी सोची-समझी योजना के तहत कराया जाने लगा है ताकि युवाओं से फीस के नाम पर इकट्ठा पैसा हड़पने का मौका मिल जाए। कांग्रेस की मौजूदा सरकार के शासन में सबसे पहले पुस्तकालय भर्ती परीक्षा का पेपर लीक किया गया, फिर जेइएन परीक्षा का 2021 में एसआइ की भर्ती परीक्षा हुई तो फिर पर्चा लीक हो गया। उसके बाद पहले पटवार परीक्षा और अब अध्यापक पात्रता परीक्षा (रीट) का भी वही हश्र हुआ।

इस मामले में भाजपा भी कम नहीं रही। उसके शासन में आरएएस परीक्षा 2013 में पेपर लीक हुआ। 2018 में कांस्टेबल परीक्षा निरस्त की गई। कनिष्ठ लेखाकार की 2013, 2015 व 2016 परीक्षाओं का भी यही हश्र हुआ। क्लर्क ग्रेड द्वितीय की परीक्षा का पर्चा भी आउट हो गया। जेल प्रहरी भर्ती परीक्षा का भी ऐसा ही अंजाम हुआ।

दोनों सरकारों में इस बात की भी होड़ लगी रही कि उनका शासन आते ही परीक्षाओं का पैटर्न बदल दिया जाए। शायद इसी बहाने उन्हें निरस्त करने और अंधाधुंध कमाई के नए-नए तरीके निकाले जाते रहे।

हमारे नेता मगरमच्छी आंसू बहाने में माहिर हो चुके हैं। दिखावा राज्यहित का करते हैं पर स्वहित से आगे नहीं बढ़ पाते। लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के बाद नैतिक जिम्मेदारी मानकर त्यागपत्र दे दिया। अब तो चोरी और सीनाजोरी होने लग गई। पर यह कब तक चलेगा? युवा पीढ़ी को अब मुखोटे के पीछे के असली चेहरे दिख गए तो कोई अपराधी उनके कोप से नहीं बच पाएगा।

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