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बीकानेर,शहर से करीब 140 किमी दूर पाकिस्तान बॉर्डर का गांव दंडकलां। 60 वर्ष की पारू बाई ढाणी में बैठी कशीदाकारी में मगन है। वे कपड़े पर सिंधी कढ़ाई से सुंदर डिजाइन बना रही हैं। इसी दौरान गांव की महिलाएं कढ़ाई किए हुए वस्त्र लेकर आती हैं। पारू बाई को तैयार माल सौंपकर नए वस्त्र लेकर चली जाती हैं। यह सिलसिला रोज का है।

दरअसल पारू बाई दंडकलां गांव में महिलाओं की लीडर हं। उरमूल सीमांत से जुड़ी होने के कारण गांव में उरमूल डेजर्ट क्राफ्ट के जरिए महिलाओं को जोड़कर उन्हें घर बैठे रोजगार मुहैया करवा रही हैं। उरमूल डेजर्ट क्राफ्ट की सीईओ प्रेरणा अग्रवाल बताती हैं कि कशीदाकारी से 65 गांवों की पांच हजार से अधिक महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल रहा है।

हर साल करीब 50 हजार पीस तैयार कर देश की नामी टेक्सटाइल कंपनियां जैसे ओकाई, जैपोर आदि को सप्लाई कर रही हैं। खास बात ये है कि इन्हीं महिलाओं में से गांवों में लीडर, मैनेजर और सुपरवाइजर बनाए गए हैं। कशीदाकारी में पाकिस्तान के सिंध प्रांत की झलक होने के कारण देश-विदेश में इस कला के परिधान महिलाओं, पुरुषों के लिए पसंद बने हुए हैं।

31 साल पहले कुछ महिलाएं आगे आईं, पुरुष प्रधान समाज ने विरोध भी किया
बॉर्डर के गांवों में कशीदाकारी का काम 1991 में शुरू हुआ था। उरमूल के अरविंद ओझा ने महिलाओं के इस हुनर को पहचाना और प्लेटफार्म दिया। उस वक्त गांवों में अकाल के हालात थे। रोजगार के साधन नहीं थे। अंध विश्वास, छुआछूत जैसी कुरीतियां हावी थी। ऐसे हालात में पारू बाई, तारी बाई, पूरा बाई, गंगा देवी सहित कुछ महिलाएं आगे आईं। पुरुष प्रधान समाज में भारी विरोध भी सहना पड़ा। जब पारंपारिक कला से पैसा मिलने लगा तो दूसरी महिलाएं भी जुड़ने लगीं। आज पांच हजार से अधिक महिलाएं इस कारोबार से जुड़ चुकी हैं। हर महिला घर बैठे 8 से 10 हजार रुपए तक कमा रही है।

इन 65 गांवों में 5 बड़े बदलाव
1. महिलाएं आत्मनिर्भर बनीं। तीसरी पीढ़ी भी कशीदाकारी कर रही है।
2. गांवों में महिला साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा। बेटियां कॉलेज जाने लगी हैं।
3. बाल विवाह का चलन बहुत ही कम हो गया है।
4. कुरीतियों से निजात मिली
5. सोच में बदलाव आया। अब ऑन लाइन बिजनेस की तरफ बढ़ रहे कदम।

सीमांत क्षेत्र में कशीदाकारी को ‘उरमूल डेजर्ट क्राफ्ट’ ब्रांड नाम दिया है। अब इसे ऑनलाइन भी करेंगे। – सुशीला ओझा, चेयरपर्सन, उरमूल सीमांत
सम्मान: मोहिनी देवी को प्रिंयका चोपड़ा ने दिया था नेशनल अवार्ड, टीवी पर एपिसोड भी आ चुका है
डेली तलाई की 32 वर्षीय मोहिनी देवी को बेस्ट कशीदाकारी पर राष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड भी मिल चुका है। यह अवार्ड उन्हें वर्ष 2015-16 में मुम्बई में आयोजित एक कार्यक्रम में अदाकारा प्रिंयका चोपड़ा ने दिया था। उसके बाद एक टीवी चैनल ने ‘कुशलता के कदम’ एपिसोड के जरिए मोहिनी के संघर्ष की कहानी दिखाई। बकौल मोहिनी 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद घरवालों से शादी कर दी।

रोजगार की तलाश में पति खंगाराम के साथ उरमूल सीमांत कार्यालय पहुंची तो कशीदाकारी का काम मिल गया। बचपन में मां के साथ कशीदाकारी करती थी। इसलिए जल्दी सीख गईं। नई-नई डिजाइन बनाने लगीं। सीईओ प्रेरणा अग्रवाल ने बताया कि मोहिनी का काम इतना साफ सुथारा था कि वह कुछ ही महीनों में डिजायनर के लेवल पर पहुंच गई। उसे मेन सैंपलर बना दिया गया। यहां काम करने के बाद वह वापस गांव लौटी और महिलाओं का ग्रुप बनाया।

प्रदेश की फीमेल लिटरेसी रेट से बीकानेर 1.11% आगे
30 साल में 26.74% की बढ़ोतरी; साक्षरता दर 53.77%
दिलीपसिंह पंवार के अनुसार साक्षरता के क्षेत्र में हो रहे कार्यों की बदौलत बीकानेर पिछले तीन दशक में 23.04 % की बढ़ोतरी के साथ प्रदेश में 17वें पायदान पर पहुंच गया है। खास बात यह है कि बीकानेर की फीमेल लिटरेसी रेट राज्य की महिला साक्षरता से 1.11% अधिक है।बीकानेर में महिला साक्षरता दर 53.77% है जबकि राजस्थान की महिला साक्षरता दर 52.66% ही है। तीन दशक पहले की बात करें तो बीकानेर में महिला साक्षरता दर 27.03% ही थी। 26.74% की बढ़ोतरी के साथ आज बीकानेर की फीमेल लिटरेसी रेट 53.77% पर पहुंच चुकी है।

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