बीकानेर,पत्रकारिता का जीवन काफ़ी उल्लासपूर्ण रहा। हम पत्रकार दोस्तों की अपनी एक टीम थी। भवानीशंकर शर्मा, अभय प्रकाश भटनागर , शुभु पटवा, मांगीलाल माथुर, जब तक दिन में एक बारी आपस में मिल नहीं लेते तब तक बैचैन रहते थे। भवानी भाई हमको लीड करते। क्योंकि हम सब में सीनियर वो थे। विश्वज्योति सिनेमा के आगे किराडू जी की पान वाली दुकान पर रोज रात्रि हमारा जमावड़ा था जहाँ हम लोग बेंचो पर बैठकर दो बटा तीन, तीन बटा पाँच, चार बटा छ: कप चाय का आर्डर देते और फिर चाय की चुस्कियों में परिचर्चा करते। वैसे वहाँ पर महबूब अली, एडवोकेट राम किशन गुप्ता भी हमारी परिचर्चा में सम्मिलित हो जाते। वही पर कवि हरीश भदानी, भवानीशंकर व्यास विनोद, मोहम्मद सदीक, विशन मतवाला और भी मस्तान जैसे शायर उस परिचर्चा का हिस्सा बन जाते। फिर गीतों की स्वर लहरिया गूंजने लगती। इन लोगो से हमे कविता, ग़ज़ल, शायरी सुनने को मिलती। बहुत आनन्द आता ।चाय के दौर चलते रहते। कब रात्रि के १२ बज जाते पता नहीं चलता। वैसे सामने कॉफ़ी हाउस भी था कभी कभी वहाँ बैठकर भी सारे दिन की थकान चाय की चुस्कियों में मिटा लेते। हमारा वरिष्ठ पत्रकारो अम्बालाल माथुर, शेखर सक्सेना और ललित आज़ाद से भी अच्छा समन्वय रहता था उनसे भी हमे गाइडेंस मिलती और बातो बातो में कई खबरे मिल जाती। किराडू जी की होटल से हम पत्रकार मित्रो का कारवा पैदल पैदल ही प्रकाश चित्र सन्नी पान वाले की दुकान पर जाने के लिए निकल पड़ता। चलते- चलते बाते होती रहती हास- परिहास की बाते भानी भाई शहर की मस्ती भरी बाते चुटकीले अंदाज़ में सुनाते तो पेट लों ट पॉट हो जाता । हम दिन भर का लेखा जोखा एक दूसरे को बताकर काफ़ी हल्के हो जाते। फिर भी घर जाने को जी नहीं करता। वहाँ से पान खाकर सीधे प्रेमजी पान वाले की होटल जाते और वहाँ चाय का एक दौर और चलता। यहाँ पर दिलीप भाटी, संतोष जैन, के. के . गौड़ के साथ तिलक जोशी, ख़ुशहाल रंगा, गोकुल जोशी भी मौजूद होते। राजनीति पर भी खूबसारी बाते होती। हँसी- मज़ाक़ और दिलो में सदभाव इस जमावड़े की ख़ासियत होती। पत्रकारो के आपसी इस मिलन से हमे कई नई बाते और खबरे मिल जाती। कौन नेता या मंत्री कल बीकानेर आ रहा है और क्लेक्टर किस गांव का दौरा करके आये है किस फ़िल्म की शूटिंग कहाँ चल रही है न्यास, निगम में कैसे कैसे घपले हो रहे हैं। आर टी ओ में बिना रिश्वत काम नहीं होता। अगले दिन की शुरुआत हम सुबह छापे दादे यानी अभयप्रकाश भटनागर की प्रेस में बैठकर तय करते कि आज के लिए समाचारों का कैसे संकलन किया जाए? अपने अपने स्रोतों से हम समाचार प्राप्त करते और फिर उसे टेलीप्रिंटर से प्रेषित करते। भवानी भाई राजस्थान पत्रिका के संवाददाता थे अभयप्रकाश भटनागर जनसत्ता के, शुभु पटवा आकाशवाणी के, खाकसार यानी मैं जलते दीप, दैनिक न्याय, का रिपोर्टर और अपने पत्र बीकानेर एक्सप्रेस का सम्पादक था हम सारा सारा दिन एक्सक्लूजिव न्यूज एकत्रित करने में जुटे रहते और फिर न्यूज लेकर टेलीग्राफ ऑफिस की और भागते। और अगले दिन समाचार पत्रों को टटोलते कि हमारी न्यूज को जगह मिली है या नहीं। हम में से किसी की अच्छी स्टोरी कवरेज पर उसे बधाई देते। निर्भरता , निडर, साहसी और ईमानदारी पत्रकारिता का वो दौर था। बिना किसी दवाब या प्रलोभन के हम अपना काम भली- भाँति करते। हमने कोटगेट पर रेल फाटको की समस्या समाधान के लिए एक साल से जायदा समय तक धरने पर बैठे रामकिशन दास गुप्ता एडवोकेट की रोज़ाना शानदार कवरेज की। हमने अन्न आन्दोलन को समाचार पत्रों में काफ़ी स्थान दिलाया। हम सभी ने इमरजेंसी का खुलकर विरोध किया और काफ़ी प्रताड़ित भी हुए। कई बारी हमे अंडरग्राउंड भी रहना पड़ा। हमने प्रधानमंत्री श्रीमति गांधी की बीकानेर यात्रा की शानदार कवरेज की। जो सभी नेशनल अखबारों में छपी और अटलबिहारी बाजपेयी की हनुमानजी मंदिर के सामने हुई जनसभा की कवरेज को नेशनल अखबारों में छपवाया। मैंने भवानी भाई के साथ मिलकर फ़िल्म एक्टर राजकपूर का शानदार इंटरव्यू लालगढ़ पैलेस में लिया। वे फ़िल्म अब्दुला की शूटिंग में बीकानेर आए थे। फ़िल्म सहेरा की शूटिंग पर बीकानेर आए वी शांताराम से हम मिले और फ़िल्म राजहठ पर सोहराब मोदी, मधुबाला और प्रदीप कुमार से हमने गजनेर में उनका इंटरव्यू लिया। कई घटनाओं और समाचारों को हमने निर्भय होकर छापा। कभी प्रताड़ित हुए, कभी कोर्ट के नोटिस मिले। लेकिन जीत हमेशा सत्य की हुई। अब न रहे वो पत्रकार साथी और न रही वो पत्रकारिता। आज जी बहुत उदास है क्योंकि आज भवानी भाई की सातवीं पुण्य तिथि थी उनकी यादे आज भी हमारे मानस पटल पर ज़िंदा है । राजनीति का गुरूर उन्हें छू नहीं पाया। मेयर जैसे उच्च पदो पर रहते हुए भी वो जमीन के आदमी थे। और एक अच्छे पत्रकार थे। छोटा हो या बड़ा, सबके लिये वो थे भवानी भाई । मेरे लिए वो ख़ास थे वो मेरी बीमारी पर अक्सर मेरा हाल पूछने घर आते। लेकिन उनसे बिछड़े आज सात साल हो गये कोई दिन ऐसा नहीं रहा जब वो याद ना आये हो। उनके बिना ना वैसी पत्रकारिता रही ना वैसे लोग रहें ? उन्हें शत शत नमन।
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