Trending Now












बीकानेर,भारत का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां पर आस्था से जुड़ा कोई पावन धाम न हो. राजस्थान में तो पग-पग में आपको देवी-देवताओं से जुड़े सिद्ध एवं अनूठे मंदिरों के दर्शन होते हैं. एक ऐसा ही अनूठा मंदिर बीकानेर शहर में भांडाशाह जैन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

बेहतरीन कलाकृतियों और अनोखी वास्तु कला को समाहित किए यह मंदिर जैन धर्म से जुड़े 5वें तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान को समर्पित है. इस मंदिर की खास बात ये भी है कि इसे बनाने में पानी की जगह शुद्ध देशी घी का इस्तेमाल किया गया है. आइए भगवान सुमतिनाथ जैन मंदिर से जुड़े रोचक कथा और इसकी निर्माण के बारे में विस्तार से जानते हैं.

कब और किसने करवाया मंदिर का निर्माण

बीकानेर के इस प्रसिद्ध जैन मंदिर का निर्माण एक भांडाशाह नाम के व्यापारी ने करवाया था. जिसकी शुरुआत 1468 में हुई थी. जिसे बाद में उसकी पुत्री ने 1541 में पूरा करवाया था. चूंकि जैन धर्म से जुड़े पांचवें तीर्थकर भगवान सुमतिनाथ को समर्पित इस मंदिर का निर्माण भांडाशाह ने करवाया था, इसलिए स्थानीय लोग इसे भांडाशाह जैन मंदिर के नाम से जानते हैं. तीन मंजिला इस जैन मंदिर में लाल और पीले पत्थरों का प्रयोग किया गया है. लगभग 108 फुट ऊंचे भांडाशाह जैन मंदिर में भगवान सुमतिनाथ जी मूल वेदी पर विराजमान हैं. मंदिर में उकेरे गए चित्र एवं कलाकृतियां देखते ही बनती हैं, जिसे देखने के लिए लोग देश-विदेश से यहां पर पहुंचते हैं.

मंदिर की तरह अनोखी है इसके निर्माण की कहानी

जिस मंदिर को बनाने में पानी की जगह शुद्ध घी का इस्तेमाल किया गया हो और वो भी थोड़ा-बहुत नहीं बल्कि पूरे 40,000 किलो तो निश्चित तौर पर उसे बनाने का कारण भी अपने आप में अनोखा ही रहा होगा. मान्यता है कि एक बार घी के व्यापारी भांडाशाह जब एक मंदिर को बनवाने के लिए राजमिस्त्री के साथ चर्चा कर रहे थे, तभी उनके सामने रखे घी के पात्र में मक्खी गिर गई. तब उन्होंने तुरंत ही मक्खी को उठाकर अपने जूते में रगड़ दिया.

तब मिस्त्री ने ली सेठ भांडाशाह की परीक्षा

मिस्त्री ने ऐसा देखकर सोचा कि ये कंजूस सेठ कैसे मंदिर बनवाएगा.अचानक से उसके मन में सेठ की दानवीरता की परीक्षा लेने का ख्याल आया और उसने सेठ से कहा कि यदि आप चाहते हैं कि आपके द्वारा बनवाया गया मंदिर सदियों तक सुरक्षित रहे तो उसे पानी की जगह घी से बनवाइये. ऐसा सुनते ही सेठ न हामी भर दी और घी का प्रबंध करवा दिया. सेठ के बदले व्यवहार को देखकर मिस्त्री को आश्चर्य और पश्चाताप दोनों हुआ.

400 कुंटल घी से हुआ इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण

तब उसने सेठ को सच को बताते हुए कहा कि आप अपना घी वापस ले लीजिए मंदिर का निर्माण पानी से हो जाएगा, लेकिन सेठ न ऐसा करने से इंकार कर दिया क्योंकि उसका कहना था कि उसने अब घी भगवान के नाम पर निकाल दिए हैं और उन्होंने मिस्त्री को घी से ही मंदिर का निर्माण करने को कहा.. मान्यता है कि उस जमाने में जब मंदिर का निर्माण हुआ तो उसमें कुल 400 कुंटल घी खर्च हुआ था. मान्यता है कि गर्मी के दिनों में आज भी मंदिर की दीवारों से घी रिसता हुआ नजर आता है.

नोट,यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.

Author