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बीकानेर,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले करीब तीन साल से सख्त कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं. तीसरी लहर के कम होने के बाद जब सभी प्रतिबंध हटा लिए गए, तब भी पीएमओ ने अपना सख्ती का उदाहरण जारी रखा.

मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों सहित पीएम से मिलने वाले सभी आगंतुकों को कोविड परीक्षण से गुजरना पड़ता है.

जब भी कोई कैबिनेट मीटिंग होती है तो बैठक कक्ष में प्रवेश करने से पहले मंत्रियों को कोविड टेस्ट कराना होता है. इसका सभी को पालन करना पड़ता है. कम से कम दो कैबिनेट मंत्री दो अलग-अलग मौकों पर कोविड पॉजिटिव पाए गए, जब वे पीएम से मिलने वाले थे.

हाल ही में सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल का मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी से मिलने गए थे. जब वे मोदी से मिलने पीएमओ पहुंचे तो उन्हें कोविड टेस्ट कराने को कहा गया और वे संक्रमित पाए गए. उन्होंने वापस जाकर खुद को क्वारेंटाइन कर लिया. काफी हद तक इसी कारण से पीएम वर्चुअल बैठकें आयोजित करना पसंद करते हैं और वर्चुअल रूप से ही कई परियोजनाओं का उद्घाटन करते हैं.

नए वेरिएंट के आने से कोविड के फिर से उभरने के खतरे को देखते हुए पीएमओ ने कोविड नियमों को और सख्त कर दिया है.

राहुल का सेल्फ गोल

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने राज्यों में कांग्रेस को भले ही प्रेरित किया हो और इसने उनके बारे में जनता की धारणा को भी कुछ हद तक बदलने में सफलता पाई हो, लेकिन उनकी बातों का अटपटापन बदस्तूर जारी है. लगभग दो दशकों के सार्वजनिक जीवन में राहुल गांधी जब भी सार्वजनिक तौर पर हिंदी में बोलते हैं तो खुद को और पार्टी को भी क्षति पहुंचाते हैं.

पिछले दिनों अपनी यात्रा के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि क्षेत्रीय दलों के पास कोई राष्ट्रीय विजन नहीं है. यह इस तथ्य के बावजूद था कि कांग्रेस राज्यों में कई क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में है, जैसे तमिलनाडु में द्रमुक, झारखंड में झामुमो, बिहार में राजद और जदयू, महाराष्ट्र में शिवसेना आदि. उन्होंने अपना स्टैंड भी स्पष्ट नहीं किया.

कुछ दिनों बाद उन्होंने 15 राजनीतिक दलों के नेताओं को व्यक्तिगत पत्र लिखकर उन्हें 24 दिसंबर या जहां भी संभव हो, दिल्ली में अपनी यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने उन राज्यों का ब्यौरा दिया, जिन्हें वह श्रीनगर जाने के रास्ते में कवर करेंगे. द्रमुक उनसे बेहद खफा थी. फिर भी द्रमुक नेता कनिमोझी और शिवसेना के एक सांसद शामिल हुए.

कांग्रेस के नेता वरिष्ठ नेताओं को लगातार फोन कर रहे थे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बसपा के प्रतिनिधि भेजने की संभावना नहीं है. अभी यह देखा जाना बाकी है कि 3 जनवरी, 2023 को जब वे अपनी यात्रा फिर से शुरू करेंगे तो कौन-कौन शामिल होंगे. संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे की पहल पर कांग्रेस से हाथ मिलाने वाली तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियां राहुल गांधी के साथ कहीं नजर नहीं आईं.

कुछ रैलियों में राहुल के भाषणों ने उन लोगों में भी चिंता पैदा कर दी है जो उनका समर्थन करना चाहते हैं.

नए चाणक्य की राष्ट्रीय भूमिका!

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि गुजरात भाजपा अध्यक्ष और लोकसभा सांसद सी.आर. पाटिल को राष्ट्रीय स्तर पर अहम भूमिका दी जा सकती है. 2014 से पीएम मोदी के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी होने के बावजूद एक अल्पज्ञात राजनेता पाटिल लो प्रोफाइल बनाए रखते हैं.

हाल ही में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा द्वारा सभी रिकॉर्ड तोड़ने के बाद प्रधानमंत्री ने उनकी प्रशंसा की, तब यह व्यापक रूप से अनुमान लगाया गया था कि जे.पी. नड्डा की जगह पाटिल नए पार्टी प्रमुख हो सकते हैं. लेकिन भाजपा मुख्यालय से निकली रिपोर्टों से पता चलता है कि नड्डा 2024 के लोकसभा चुनाव तक अपने पद पर बने रहेंगे.

हालांकि पाटिल को गुजरात के बाद अन्य प्रमुख राज्यों के लिए चुनावी रणनीतिकार के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका दी जा सकती है. भाजपा ने 2024 में 170 कमजोर लोकसभा सीटों की पहचान की है.

ओपीएस : मोदी का नया सिरदर्द

सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को पुनर्जीवित करने के लिए राज्यों में बढ़ती मांग प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक नया सिरदर्द है. इसे 2004 में बंद कर दिया गया था और नई पेंशन योजना (एनपीएस) लाई गई थी. मोदी ओपीएस की बहाली के सख्त विरोधी हैं. जब भाजपा की हिमाचल इकाई ने अपने घोषणापत्र में ओपीएस को शामिल करना चाहा तो प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया.

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण यह है कि सरकारी कर्मचारियों ने कांग्रेस को वोट दिया. अब भाजपा नेतृत्व इस दुविधा में है कि उसे उन नौ राज्यों में क्या करना चाहिए जहां 2023 के दौरान चुनाव होने हैं.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले ही ओपीएस लाने की घोषणा कर चुके हैं और कई तरह की खैरात बांट चुके हैं क्योंकि राज्य में अगले साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं. गहलोत का अगला मास्टर स्ट्रोक है अप्रैल 2023 से 500 रुपए में गैस सिलेंडर रिफिल देना.

उज्ज्वला योजना के तहत 60 लाख से ज्यादा लाभार्थी हैं. लेकिन उनमें से अधिकांश ने रिफिल लेना बंद कर दिया है क्योंकि इसकी कीमत बहुत अधिक है. क्या भाजपा खाद्यान्न उपलब्ध कराने की तरह इसके लिए कोई राहत पैकेज लाएगी? पीएमओ इस बारे में क्या सोच रहा है, यह कोई नहीं जानता.

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