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बीकानेर,पशु प्रेम से अहंकार मुक्ति हेम शर्मा मनुष्य पशु पक्षियों से प्रेम करता रहा है। इसका अर्थ है कि वो प्रकृति जन्य प्रेम से अहंकार से मुक्त रहता है। बिना अहंकार से मुक्त हुए कोई आदमी चराचर जगत से प्रेम नहीं कर सकता। चाहे तोते के रूप में मिंटू हो, या घोड़ी बादल, गाय, बकरी, कुत्ता हो। अहंकार आदमी को आदमी नहीं रहने देता। देवी सिंह भाटी का यह पशु प्रेम क्या हो सकता है! वो ही जाने,परंतु देवी सिंह भाटी निर्लिप्त भाव से समाज और राष्ट्र को बहुत कुछ देने का सामर्थ्य रखते हैं। उनमें जज्बा है। संस्कार और सामर्थ्य है। जरूरत निर्लिप्त होने की है। मोह, माया,ईर्ष्या द्वेष छोड़ने की है। राजनीतिक ऐषणा से मुक्ति पाने की है। प्रकृतिस्थ जीवन बनाने की है। क्या राजनीतिक स्टेट्स के बिना व्यक्ति का अस्तित्व नहीं होता ? बापू …। राजनीतिक पद पर नहीं थे। फिर भी आज विश्व पटल पर उनकी हैसियत देश के ऊंचे से ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति से जरा तुलना कर लीजिए। और आज के अधिकांश नेताओ का व्यवहार, कृत्य और लोक जीवन में भूमिका की तुलना कर लीजिए। झूठ कपट, भेदभाव, भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, अन्याय का संरक्षण, ईर्ष्या द्वेष से मुक्त नहीं है। पता नहीं ये राजनीति करके क्या पाना चाहते हैं? राजनीति के प्रतिमानोंके अलावा भी समाज में श्रेष्ठ काम करने के प्रतिमान होते ही होंगे। समाज में मानव सेवा का भाव गया नहीं है। दुर्भाग्य है कि हम नेताओं और नेतागिरी को ही सबकुछ मानने लगे हैं। आज कोन युवा है जो राजनीति से ज्यादा समाज सेवा को तरजीह देता है ? ऐसे समाज में प्रतिमान स्थापित करने और युवाओं को दिशा देने की जरूरत है। ये काम कोन करेगा ? जो जीवन के यर्थात को समझ चुका है जो पशु पक्षी और प्रकृति को समझता है जिसने मिंटू, बादल, गाय, बकरी से निकटता पा ली है यानि जीवन के अहंकार को छोड़कर प्रकृतिस्थ हो गए हैं। पिंटू…पिंटू…पिंटू…!

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