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बीकानेर,बकरियों की उन्नत नस्लों पर फोकस करना चाहिए, क्योंकि अच्छी नस्लें कम लागत में बढ़िया दूध उत्पादन करती हैं और जब दूध देना बंद कर दें तो बाजार में अच्छे दाम पर बिक जाती है.

देश-विदेश में दूध, डेयरी, मांस की खपत बढ़ती जा रही है. ये किसानों के लिए अच्छा संकेत है. गांव में भी तेजी से पशुपालन, डेयरी फार्म और पोल्ट्री फार्म खुलते जा रहे हैं. बकरियों के दूध और मांस की भी बाजार में अच्छी-खासी डिमांड है. यही वजह है कि अब कई लोग बकरी फार्मिंग का बिजनेस कर रहे हैं. मात्र 4 बकरियों को पालकर कुछ ही समय फार्म का विस्तार हो जाता है. बकरियों की नस्ल पर भी निर्भर करता है. एक्सपर्ट्स की मानें तो बकरी पालन से अच्छी मुनाफा कमाने के लिए बकरियों की उन्नत नस्लों पर फोकस करना चाहिए, क्योंकि अच्छी नस्लें कम लागत में बढ़िया दूध उत्पादन करती हैं और जब दूध देना बंद कर दें तो बाजार में अच्छे दाम पर बिक जाती है.

एक्सपर्ट्स ने बताई बकरियों की टॉप 3 नस्लें
कुछ ही समय पहले महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के वैज्ञानिकों ने बकरियों की टॉप 3 नस्लों की पहचान की है. इन नस्लों का रजिस्ट्रेशन भी राष्ट्रीय राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के तहत हो चुका है. इन बकरियों की पहचान सोजत, गूजरी, करौली बकरी के तौर पर की गई है, जो राजस्थान के अलग-अलग जिले से ताल्लुक को रखती हैं, लेकिन अब देश के चारों ​ कोनों में अपना बसेरा कर लिया है. आइए जानते हैं कैसे बकरियां किसानों की आमदनी को दोगुना कर सकती हैं.

सोजत बकरी
राजस्थानी नस्ल की सोजत बकरी का मूल स्थान सोजत जिले से हैं, लेकिन अब ये पाली, जोधपुर, नागौर और जैसलमेर जिलों में भी पहचान बना चुकी है. बता दें कि ये बकरी की सबसे सुंदर नस्ल है, जिसके बाजार में काफी अच्छे दाम मिल जाता है. सोजत बकरी दूध उत्पादन कम होता है. ये मुख्यतौर पर मांस के लिए पाली जाती है.

गूजरी बकरी
राजस्थानी मूल की गूजरी बकरी को जयपुर, अजमेर और टोंक जिलों और नागौर तथा सीकर जिले के कुछ इलाकों में भी पाला जाता है. इस नस्ल की बकरी दूध के साथ अच्छी क्वालिटी के मांस का भी सोर्स है.दूसरी नस्लों की तुलना में इस नस्ल की बकरी का आकार बड़ा होता है. इस नस्ल की बकरियां अधिक मात्रा में दूध उत्पादन देती हैं. वहीं बकरों को मांस के लिए पालते हैं.

करौली बकरी
करौली बकरी एक स्वदेशी नस्ल है, जो अब करौली जिले के सपोटरा, मान्डरेल तथा हिंडौन से लेकर सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी और बारां जिलों तक फैली चुकी है. मीणा समुदाय की बकरी के नाम से मशहूर करौली बकरी को नस्ल सुधार कार्यक्रम के तहत रजिस्टर किया गया है. ये भी दूध और मांस का बढ़िया प्रोडक्शन देती है.

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