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बीकानेर के धोरों में इन दिनों तेंदुए की खोजबीन चल रही है। पहले लूणकरनसर के गांवों में तेंदुए की आशंका में चप्पा चप्पा छाना गया और अब ये ही हालात श्रीडूंगरगढ़ के गांवों का है। अब तक कहीं भी तेदुआ तो नजर नहीं आया लेकिन कुछ फुट प्रिंट को तेंदुए का ही माना जा रहा है। पिछले तीन दिन से श्रीडूंगरगढ़ के तोलियासर दखनादी गांव में किसान हाथ में लठ लिए बारी बारी से पहरा दे रहे हैं ताकि तेंदुआ आए तो उससे दो-दो हाथ कर सकें। वन विभाग की टीम भी तेंदुआ ढूंढ रही है। माना जा रहा है कि अरावली की पहाड़ियों से भटकता हुआ तेंदुआ इस एरिया में आ गया है। इससे पहले वर्ष 2016-17 में भी लूणकरनसर में तेंदुआ आया था।

श्रीडूंगरगढ़ कस्बे से कुछ ही दूरी पर तोलियासर दिखनादी एरिया में तेंदुए के फुट प्रिंट मिलने के बाद से ही गांव में डर है। 4 दिन पहले बुधवार को तोलियासर दिखनादी रोही में किशननाथ सिद्ध ने अपने खेत में किसी बड़े शिकारी जानवर के फुटप्रिंट देखे तो उसने ग्रामीणों को इतला दी। उस दौरान सूचना मिलने पर वन विभाग की टीम ने मौका देखकर माना कि यह फुट प्रिंट तेंदुए के है। उसके बाद गांव वाले समूहबद्ध होकर चौकसी करने लगे। शुक्रवार को ग्रामीणों के साथ वन विभाग की टीम ने तेंदुए को ढूंढने की नाकाम कोशिश की। बताया जा रहा है कि तेंदुआ सरसों के खेतों में छिपा हुआ है। यहां पानी की लाइन बदलने के लिए गए 7-8 किसानों ने तेंदुए को देखा है। जब ये किसान पानी की लाइन बदलने जा रहे थे तो यहां तेंदुआ इन पर गुर्राया था। वन विभाग की टीम ने इस दौरान ग्रामीणों को स्वयं के साथ मवेशियों को भी सुरक्षित रखने की सलाह देते हुए सतर्क रहने की बात कही है। टीम ने अंदेशा जताया है कि ये तेंदुआ तोलियासर से सातलेरा के बीच की रोही में हो सकता है।

सरसों के खेत में तेंदुआ
इस समय सरसों की फसल अपनी पूर्ण लंबाई पर होती है। जिसके बीच में तेंदुए को देख पाना नामुमकिन है। इसलिए खतरे की आशंका और बढ़ जाती है और ड्रोन से भी उसे देख पाना मुश्किल साबित हो रहा है। हालांकि वन विभाग ने ड्रोन से भी तेंदुए की खोजबीन के लिए प्रयास शुरू किए हैं।

अरावली से आ सकता है तेंदुआ

पिछले दिनों लूणकरनसर में जिस तेंदुए की खोजबीन हो रही थी, वो ही तेंदुआ अब श्रीडूंगरगढ़ पहुंच गया है। वन विभाग का मानना है कि अरावली की पहाड़ियों से भटककर तेंदुआ बीकानेर आ सकता है। इससे पहले भी लूणकरनसर में तेंदुआ आया था। रेंजर जितेंद्र कुमार का कहना है कि पहले तो जंगल थे, इसलिए तेंदुए वापस निकल जाते थे। अब रास्ता भटक रहे हैं।

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