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बीकानेर.गोवंश में फैले लम्पी स्किन डिजीज से मुक्ति पाने के लिए प्रदेश के पशुपालक जूझ ही रहे हैं, इसी बीच एक और गंभीर बीमारी घोड़ों में फैलने का खतरा मंडराने लगा है। यह बीमारी और ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है कि संक्रमित घोड़े के सम्पर्क में आने वाले इंसान को भी अपनी चपेट में ले लेती है।

घोड़ों को चपेट में लेने वाली इस बीमारी को ग्लैंडर्स कहा जाता है, जो घोड़ा इसके संक्रमण की चपेट में आ जाता है, कोई उपचार नहीं होता। बल्कि इंसान या अन्य में फैलने से रोकने के लिए घोड़े की जान लेनी पड़ती है। प्रदेश में इस ग्लैंडर्स बीमारी की चपेट में दो घोड़े आ चुके हैं। दोनों की जांच में ग्लैंडर्स पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है। यह दोनों घोड़े झुंझुनूं जिले के हैं।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के अधिकारियों के अनुसार झुंझुनूं के दोनों घोड़ों के रक्त के नमूने जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र हिसार भेजे गए थे। इसकी जांच रिपोर्ट में दोनों घोड़ों के ग्लैंडर्स पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है। अब हाई डोज इंजेक्शन देकर दोनों घोड़ों को मार दिया जाएगा। इस बीमारी से मुकाबला करने के लिए अभी तक दुनिया में कोई दवा इजाद नहीं हुई है। ऐसे में संक्रमित घोड़ों को मारना ही अंतिम उपचार है।

यह खतरनाक बीमारी

ग्लैंडर्स एक तरह की खतरनाक बीमारी है। इसका कोई इलाज भी नहीं है। संक्रमित घोड़े को मार दिया जाता है। फिर करीब दस फीट गहरे गड्ढे में घोड़े के शव को दफनाया जाता है। ताकि अन्य कोई जानवर इसकी चपेट में नहीं आए। एहतियात के तौर पर प्रदेश में जितने घोड़े हैं, उसमें से बीस प्रतिशत की हर साल जांच करानी चाहिए।

– डॉ. यशपाल शर्मा, निदेशक राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र

क्या है ग्लैंडर्स बीमारी

यह बीमारी आमतौर पर घोड़ों में होती है। यह वायरस जनित बीमारी है। इसकी चपेट में आने से घोड़े के नाक में से तेज पानी बहने लगता है। शरीर पर फफोले हो जाते हैं। सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है। साथ ही बुखार आने के कारण घोड़ा सुस्त हो जाता है। यह बीमारी संक्रमित है। एक जानवर में होने पर दूसरे मवेशियों में होने की आशंका रहती है।

राजस्थान में जांच की सुविधा नहीं

घोड़ा में पाए जाने वाले ग्लैंडर्स रोग का पता लगाने के लिए रक्त जांच की व्यवस्था प्रदेश में नहीं है। हिसार स्थित अश्व अनुसंधान केन्द्र सैम्पल जांच के लिए भेजा जाता है। इसकी जांच भी दो चरणों में की जाती है। इसके बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाता है। हिसार में अन्य राज्यों के पशु चिकित्सकों को इसके सैंपल की जांच का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अभी तक राजस्थान सरकार ने किसी पशु चिकित्सक को यह प्रशिक्षण नहीं दिलाया है।

पशुपालक को 25 हजार का मुआवजा

अगर कोई घोड़ा ग्लैंडर्स संक्रमित होता है, तो उसे मार दिया जाता है। इसके बाद मालिक को केन्द्र सरकार मुआवजे के तौर पर पच्चीस हजार रुपए देती है। जबकि संक्रमित गधा और खच्चर की मौत होने पर उसके मालिक को 16 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाता है।

पांच किलोमीटर क्षेत्र के जानवरों की जांच

अगर कोई घोड़ा ग्लैंडर्स पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसे मार दिया जाता है। इसके बाद जिस स्थान पर घोड़ा बांधा है, उसके पांच किलोमीटर तक के इलाके में रहे जानवरों की भी ग्लैंडर्स जांच की जाती है। यह रोग इंसान में भी फैलने का खतरा होता है। ऐसे में संक्रमित घोड़े की देखभाल करने वाले पालक की भी जांच की जाती है। गधा, खच्चर आदि में इसका संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा रहता है।

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