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बीकानेर,राजस्थान में गोचर, ओरण डिम्ड् फोरेस्ट नहीं बनाया जाए। गोचर में चारागाह विकास हो और ओरण में पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षित केंद्र बनाया जाए। राज्य सरकार प्रदेश में गोचर, ओरण का सही सीमांकन कर दें। इन पर हुए अतिक्रमण हटा दें। गोचर ओरण की भूमि का रिकार्ड दुरुस्त कर दें। इन भूमियों को चारागाह के रुप में विकसित कर दें। डिम्ड फोरेस्ट नाम रखने से हमारे समाज की इस तरह की भूमियों को लेकर चल रही परंपरागत आस्था को ठेस पहुंचेगी। वैसे देश में गोचर ओरण की भूमि समाज की ही देन है। सेठ साहूकारों, राजा महाराजाओं ने गोचर, ओरण की भूमि पुण्यार्थ छुड़वाई है। इस भूमि में देवताओं की नाम पर आण रखी हुई है। समाज में मान्यता है कि इस भूमि का अन्य उपयोग करना पाप माना जाता है। सरकार, पंचायतों ने जनहित या विकास के नाम पर इन भूमियों का अन्य उपयोग किया है और करते जा रहे हैं। गोचर, ओरण, जोहड़ पायतन की भूमि स्थानीय वनस्पति, जीव जंतु और पूरे पारस्थितिकी तंत्र की संरक्षक रही है। इसे पर्यावरण संरक्षण का परंपरागत केंद्र भी माना जा सकता है।
बीकानेर संभाग मुख्यालय के आस पास 45 हजार बीघा गोचर भूमि है। इसमें देशनोक, गढ़वाला , नापासर, सरेह नथानिया, भीनासर, गंगा शहर की गोचर शामिल है। बीकानेर शहर से सटी 27 हजार बीघा सरेह नथानिय गोचर में से करीब तीन हजार बीघा गोचर सरकार ने विश्व विद्यालय, पट्टी पेड़ा, सुखा बंदरगाह तथा अन्य नाम से भू उपयोग परिवर्तन कर लिया। गोचर को अतिक्रमण से बचाने और सीमांकन की मांग पर सरकार के स्तर पर वर्षों से कार्रवाई नहीं हुई अंतत: देवी सिंह भाटी के नेतृत्व में जनता ने कुछ किलोमीटर दीवार बनाई। गंगा शहर, भीनासर की गोचर की रखवाली वहां की जनता ही कर रही है। कमोबेश यही स्थिति पूरे प्रदेश की है। राज्य सरकार की नीति में गोचर में चारागाह विकास और ओरण में स्थानीय पारिस्थितिकी संरक्षण की नीति नहीं है। यह दुर्भाग्य है कि सरकारों का गोचर के विकास की तरफ कभी ध्यान ही नहीं गया है।

ऐसे में वन विभाग राजस्थान सरकार की ओर से माननीय उच्चतम न्यायालय संख्या 202 / 1995 आई.ए. संख्या 41723/ 2022 में ओरण एवं पारिस्थितिकी क्षेत्रों को डीम्ड फॉरेस्ट घोषित किये जाने के संबंध में दिनांक 01.02.2024 को विज्ञप्ति जारी कर के संबंध में आपत्तियां मांगी गई है। गोचर ओरण समाज की निगरानी में ही रखना बेहतर है। वैसे इन भूमियों का मालिकाना हक तो सरकार का ही होता है। जनता तो रखवाली कर रही है। अब सरकार को गोचर में चारागाह विकास और ओरण में स्थानीय वनस्पति संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण योजना पर समाज के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। गो+चर गाय के चरने का स्थान में तो चारागाह विकास होना ही चाहिए।, ओरण भूमि को डीम्ड फारेस्ट घोषित किये जाने के पीछे क्या उद्देश्य है? जनता के सामने रखा जाना चाहिए।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की ओर से सिविल अपील संख्या 1132 / 2011 जगपाल सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य में पारित निर्णय दिनांक 28.01.2011 में चारागाह भूमि, जोहड़ पायतन और तालाबों की भूमियों यथा चारागाह, ओरण, जोहड़, श्मशान कब्रिस्तान आदि शामलात भूमियों को ग्रामसभा / ग्राम पंचायत के शामलात उपयोग के लिए संरक्षित करने के निर्देश दिये गये है। साथ ही राजस्थान भू राजस्व भू अभिलेख नियम, 1957 के नियम 164 के तहत शामलात भूमियों को राजस्व रेकर्ड में अलग से दर्ज करने के प्रावधान निहित होते है। उक्त शामलात भूमियों की कस्टोडियन ग्राम पंचायत होने से उक्त भूमियों को ग्राम पंचायत के अलावा अन्य किसी विभाग या वन विभाग को हस्तान्तरित नही किया जा सकता है।

आजाद सिंह राठौड़ कहना है कि 2004 की कपूर समिति की रिपोर्ट में चिन्हित की गई भूमियों और वर्तमान में इस विज्ञप्ति जारी होने के समय दर्शायी गयी भूमियों में भी फर्क है। सरकार ने डीम्ड फारेस्ट पर आपत्तियां मांगी है डीम्ड फारेस्ट की कार्य प्रणाली क्या रहेगी ?, उसके कानून क्या होंगे? जो भूमिया चिन्हित हुई उस पर कोनसा कानून, परिपत्र गाइड लाइन, लागू होंगे जो इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर फारेस्ट विभाग की ओर से पब्लिक डोमेन में किसी भी प्रकार की जनसूचना नहीं है। जनता को पहले इसकी जानकारी दी जानी चाहिए फिर आपत्तियां मांगी जानी चाहिए। जनता को पता ही नहीं है डिम्ड फॉरेस्ट की अवधारणा क्या है। सरकार चाहती क्या है? गोचर में चारागाह विकास, ओरण, जोहड़ पायतन का सरकार संरक्षण करे तो जनता साथ मिलकर काम तो कर ही रही है। क्यों डिम्ड फोरेस्ट की परिभाषा गढ़ कर मुद्दा बनाया जा रहा है।

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