बीकानेर,फिल्म रिफ्यूजी का गीत…पंछी, नदिया, पवन के झोंके…कोई सरहद ना इन्हें रोके। इस गीत में गीतकार ने अपनी बात तो कह दी, लेकिन इनके इतर भी बहुत कुछ रह गया। जिस पर किसी की नजर नहीं गई।
इनमें कई ऐसे जानवर भी थे, जो देश विभाजन में सरहद की लकीर खींची गई, तो इधर से उधर हो गए। ऐसे ही एक सिंधी नस्ल का ऊंट है, जिसकी संख्या पाकिस्तान में तो सबसे ज्यादा है, लेकिन अपने देश यानी भारत में बहुत कम है। हालांकि, अब सिंधी नस्ल के ऊंट का कुनबा बढ़ाने तथा इस नस्ल की ऊंटनी के दूध की मात्रा बढ़ाने पर विमर्श किया जा रहा है। इसके लिए राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र आगे आ रहा है। पहले सिंधी नस्ल के ऊंट एवं ऊंटनी खरीदने की योजना बनाई जा रही है। इसके लिए केन्द्र के पास राशि भी आ गई है। अब खरीद की प्रक्रिया शुरू करनी है। यह काम भी जल्द ही प्रारंभ कर लिया जाएगा। इनकी खरीद के बाद केन्द्र में सिंधी नस्ल के ऊंटों के टोळे भी नजर आने लगेंगे। इस समय इस नस्ल का एक भी ऊंट केन्द्र में नहीं पल रहा है।
पांच लाख काबजट जारी
केन्द्र में ऊंटों की खरीद के लिए पांच लाख रुपए का बजट भी स्वीकृत हो चुका है। इसमें से दो लाख रुपए से सिंधी नस्ल के ऊंटों की खरीद की जाएगी। शेष राशि से अन्य नस्लों के ऊंटों की खरीद की जाएगी। सिंधी नस्ल के ऊंटों की खरीद के लिए केन्द्र के वैज्ञानिकों ने सर्वे भी कर लिया है। संभवत: आगामी दो-तीन माह में इस नस्ल के ऊंट बीकानेर की जमीन पर घूमते नजर आ सकते हैं।
एक ऊंट और नौ ऊंटनियों की होगी खरीद
सिंधी नस्ल के ऊंटों की संख्या बढ़ाने के लिए एक ऊंट तथा नौ ऊंटनियों की खरीद की जाएगी। एक ऊंट व अन्य ऊंटनियों से इनकी संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। साथ ही ऊंटनी के दूध की मात्रा बढ़ाने पर भी अनुसंधान किया जाएगा। इस समय सिंधी नस्ल के ऊंटनी के दूध देने की क्षमता पांच लीटर है। जबकि कच्छ नस्ल के अलावा अन्य नस्लों की ऊंटनियों के दूध देने की क्षमता चार लीटर तक है। केन्द्र के वैज्ञानिक सिंधी नस्ल की ऊंटनियों के दूध देने की क्षमता पांच लीटर से अधिक करने का अनुसंधान करेंगे। ताकि पशुपालक इसे व्यवसाय के रूप में अपना सकें।