बीकानेर,राजस्थान के उदयपुर में जी-20 शेरपा बैठक का आयोजन चल रहा है. जिसके सत्रीय आगाज के दौरान राजस्थानी साफे की खासा चर्चा रही, जिसे यहां आए विदेशी मेहमानों ने भी खासा पसंद किया.लेकिन आज हम आपको एक ऐसे साफे के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दुनिया का सबसे वजनी साफा है. जिसे देखने के लिए हर साल भारी संख्या में सैलानी उदयपुर आते हैं.
उदयपुर. राजस्थान की राजशाही ठाठ-बाट और शानो शौकत की पूरी दुनिया दीवानी है. यहां आने वाले हर शख्स की ख्वाहिश होती है कि वो धोरों की धरती के इस शाही अंदाज को एक बार खुद के तजुर्बे में जिए. साथ ही वो अपने सिर पर साफे को बांधना खासा पसंद करता है. वहीं, जी-20 शेरपा बैठक के दौरान सोमवार को उदयपुर में जब बीकानेर के पवन व्यास ने 20 किलो वजनी पगड़ी अपने माथे पर बांधी तो आए हुए पावणे उनके मुरीद हो गए. हर किसी में इस बात की होड़ थी कि वो विशालकाय पगड़ी बांधे शख्स के साथ एक तस्वीर ले. ऐसे में ऐतिहासिक बागोर की हवेली में म्यूजियम में नुमाइश के लिए रखी गई एक विशालकाय पगड़ी भी यादों में तरोताजा हो गई. पवन ने भले ही 20 किलो वजनी पगड़ी अपने माथे पर बांधी हो, लेकिन बागोर की हवेली के म्यूजियम में रखी इस पगड़ी का वजन 30 किलो है. जिसकी कई खासियत ऐसी है, जो इसे सबसे खास और जुदा बनाता है.दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी: बागोर की हवेली खुद-ब-खुद पूरे भारत को अपने दायरे में समेटे हुए हैं.कहा जाता है कि देश के हर राज्य की कुछ खास झलकियां इसकी चारदीवारी में अपनी छाप छोड़ रही है. यहां शस्त्रगार, कठपुतली और शाही शादी जैसे अनोखे संग्रहालय पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. इसके अलावा हवेली में दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी और कावड़ भी सजी हुई है. जिसे लोग खास तौर से देखने के लिए यहां आते हैं. हवेली में मेवाड़ की शाही घरानों की शानो को दर्शाने के लिए अलग-अलग कक्षों में झाकियां प्रदर्शित की गई है. बागोर की हवेली में भारत के कई राज्यों की पारम्परिक पाग-पगड़िया रखी हैं. जिसमें से एक है,
दुनिया की सबसे बड़ी 30 किलो वजनी पगड़ी.
यह अनूठी पगड़ी 51 फीट लंबी, 7 इंच मोटी, 11 इंच चौड़ी, और ढाई फीट ऊंची है. दुनिया की सबसे बड़ी माने जाने वाली इस पगड़ी को बड़ोदा के कारीगर अवंतीलाल चावला ने 25 दिनों में बनाया था. बागोर हवेली संस्कृति, सभ्यता और इतिहास की वह झलक है, जो अपने-आप में मेवाड़ के राज घरानों की एक पूरी गाथा सुनाती है. यहां के शाही दरवाजे, चौक, गलियारे, दरीखाना, कमरे, हर कोने से मेवाड़ी शानो-शौकत की झलक दिखाई देती है.
वहीं, लेकसिटी उदयपुर में आयोजित जी-20 शेरपा बैठक में शामिल हुए विदेशी मेहमानों का सोमवार को भव्य स्वागत किया गया. इस दौरान ऐतिहासिक सिटी पैलेस के माणक चौक में सजे पंडाल में 29 देशों के शेरपा व राजनयिकों को राजस्थानी साफा यानी पगड़ी बांधकर उनकी अगवानी की गई. इन सबके बीच दुनिया की सबसे लंबी पगड़ी को देख विदेशी शेरपा अचंभित रह गए. दरअसल, बीकानेर के पवन व्यास ने साथी लोकेश व्यास के सिर पर करीब 450 मीटर लंबी पगड़ी बांधी. बताया गया कि 20 किलो वजनी व केसरिया रंग की इस पगड़ी को बांधने में करीब आधे घंटे का वक्त लगा. इससे पहले विदेशी मेहमानों को भारतीय शेरपा अमिताभ कांत अपने साथ दरबार हॉल से गोल्फ कार्ट में बैठाकर माणक चौक लाए, जहां शेरपाओं का राजस्थानी अंदाज में स्वागत किया गया.
20 किलो का साफा बना आकर्षण का केंद्र..माणक चौक में विदेशी अतिथियों को राजस्थानी साफा बांधने से पहले उन्हें इसके गौरवमयी परंपरा से अवगत कराया गया. वहीं, इसे बांधने के लिए बीकानेर के सिद्धहस्त साफा आर्टिस्ट पवन व्यास को बुलवाया गया था. व्यास ने विदेशी अतिथियों के सामने 450 मीटर व 20 किलो वजनी साफा बांधकर अपनी कला का प्रदर्शन किया. जिसे देख सभी अतिथि अभिभूत हुए. इस दौरान कई विदेशी अतिथियों ने 20 किलो वजनी साफे व कलाकार के साथ तस्वीरें भी खिंचवाई.विश्व की सबसे बड़ी और सबसे छोटी पगड़ी बांधने का वर्ल्ड रिकार्ड अपने नाम कर चुके साफा आर्टिस्ट पवन व्यास ने बताया कि उनका पूरा परिवार इसी काम में जुटा है. व्यास ने कहा कि वे खुद भी पिछले 13 सालों से यही काम कर रहे हैं. इससे पहले उन्होंने एक से तीन सेंटीमीटर की सबसे छोटी 10 अलग-अलग तरह की पगड़ी अपने हाथों की अंगुलियों में बांध कर इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाया था.
राजस्थानी साफे के साथ ली सेल्फी: शेरपा मेहमानों ने राजस्थानी रंगबिरंगी बंडी और दुपट्टे को धारण करने के बाद कुर्सियों पर बैठ साफा बंधवाया. इसके बाद सभी सेल्फी लेते नजर आए. इतना ही नहीं शेरपाओं को वहां पहले से तैनात विशेषज्ञों ने उनके पसंदीदा रंगों के साफे बांधे. जिसे देख शेरपाओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बांधकर अपनी कला का प्रदर्शन किया. जिसे देख सभी अतिथि अभिभूत हुए. इस दौरान कई विदेशी अतिथियों ने 20 किलो वजनी साफे व कलाकार के साथ तस्वीरें भी खिंचवाई.