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बीकानेर,कौशल्या देवी स्मृति व्याख्यानमाला में आज 400 से अधिक शिक्षकों को संबोधित करते हुए मुनि सत्यजीत जी ने शिक्षा से संबंधित वेद मंत्रों की व्याख्या की। यह व्याख्या सर्व कालीन प्रासंगिक ऋग्वेद का मुख्य विषय ज्ञान है। शिक्षकों को वाचस्पति कहां गया अर्थात वाणी पर नियंत्रण करने वाला। आचार्य का मुख्य अर्थ आचरण को करवाने वाला । आचार्य मृत्यु स्वरूप होता है जो विद्यार्थी के जीवन से अपशिष्ट को हटाने वाला तथा अनुशासन को लाने वाला बताया गया है। विद्यार्थी शिक्षक से 25% स्वयं की बुद्धि से 25% अपने साथियों से विचार-विमर्श द्वारा 25% समय और परिस्थितियों से 25% ज्ञान अर्जित करता है। इसी ज्ञान का उपयोग वह अपनी बुद्धि के अनुसार जीवन पर्यंत करता है। यज्ञ से प्रारंभ हुए कार्यक्रम के दूसरे दौर में गोलमेज सम्मेलन में आज का विषय था अष्टांग योग की व्याख्या एवं योग का जीवन में महत्व विषय पर शहर के गणमान्य व्यक्तियों ने विचार-विमर्श किया। बाहर से पधारे हुए विद्वानों के साथ इस चर्चा में एडीएम सिटी पंकज शर्मा, सागर से रामेश्वर नंद जी महाराज, आकाशवाणी से महेश्वर नारायण शर्मा, लोकमत के संपादक अशोक माथुर, पूर्व चेयरमैन हाजी मकसूद अहमद, सिंथेसिस से जेठमल सुथार, उद्घोषक संजय पुरोहित, योग प्रशिक्षक विनोद जोशी, कवियत्री कृष्णा आचार्य, प्राकृतिक चिकित्सक वत्सला गुप्ता ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्य स्वामी प्रद्युम्न जी ने की तथा योग को जीवन से जोड़ने के लिए प्रेरित किया। साय: कालीन सत्र में 600 से अधिक शिक्षकों तथा अभिभावकों को संबोधित करते हुए मुनि जी ने अभिभावक तथा अभिभावित एवं शिक्षक तथा विद्यार्थी के संबंधों की विस्तृत व्याख्या की। कृष्ण सुदामा के संबंधों का गुरुकुल के संदर्भ में उदाहरण प्रस्तुत किया गया। विद्यालय को संस्कार निर्माण की प्रयोगशाला बताते हुए इसमें सदैव सकारात्मक विचारों को प्रेरित करने हेतु तथा जीवन की विषमताओं का सामना दृढ़ता पूर्वक करने के लिए प्रेरित किया गया।

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