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बीकानेर,पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला के मर्डर के बाद लॉरेंस बिश्नोई का नाम चर्चा में है. कई लोगों कह रहे हैं कि मूसेवाला मर्डर में ‘बिश्नोई गैंग’ का हाथ है और बिश्नोई समाज को निशाने पर लिया जा रहा है.लेकिन, बिश्नोई समाज के लोगों का कहना है कि ये ‘बिश्नोई गैंग’ नहीं है बल्कि ये ‘लॉरेंस गैंग’ हो सकती है. बिश्नोई गैंग और लॉरेंस गैंग में काफी अंतर है. वहीं, राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर अपने नाम के आगे बिश्नोई (Bishnoi Community) लगा लिया है. इसके बाद ‘बिश्नोई’ को लेकर चर्चा बढ़ गई है.

दरअसल, सलमान खान के काले हिरण मामले में भी बिश्नोई समाज का नाम काफी चर्चा में रहा था. ऐसे में जानते हैं कि बिश्नोई समाज क्या है और किन कारणों से इसकी ज्यादा चर्चा होती है. बिश्नोई समाज की प्रकृति प्रेम के लेकर ज्यादा बात होती है तो ऐसे में बिश्नोई समाज के प्रकृति प्रेम के बारे में भी जानते हैं, जिसकी वजह से इस समाज को जाना जाता है.

कौन हैं बिश्नोई?

बिश्नोई समाज जोधपुर के पास पश्चिमी थार रेगिस्तान से आता है और इसे प्रकृति प्रेम के लिए जाना जाता है. बिश्नोई समाज में प्रकृति को भगवान तुल्य माना जाता है और उनका प्रकृति प्रेम ऐसा है कि वो इसकी रक्षा के लिए अपनी जान भी देने के लिए तैयार रहते हैं. वहीं, इतिहास में कई बार ऐसे मौके आए भी हैं, जब बिश्नोई समाज ने प्रकृति के लिए कई आंदोलन किए और कई लोगों ने प्रकृति के आंदोलन में अपनी जान भी गंवाई है.

दरअसल, बिश्नोई बीस (20) और नोई (9) से मिलकर बना है. इस समाज में 29 का खास महत्व है, क्योंकि बिश्नोई अपने आराध्य गुरु जम्भेश्वर के बताए 29 नियमों का पालन करते हैं. इन नियमों में एक नियम शाकाहारी रहना और हरे पेड़ नहीं काटना भी शामिल है. यह समाज प्रकृति के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले लोगों को शहीद का दर्जा भी देता है.बिश्नोई समाज के लोग लगभग 550 साल से प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं. बता दें कि बिश्नोई राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी हैं.

बिश्नोई समाज में जम्भेश्वर जी के दया पाठ के नियम ‘जीव दया पालनी, रूंख लीलू नहीं घावे’ का पालन करते हैं. इसका मतलब होता है कि जीवों के प्रति दया रखनी चाहिए और पेड़ों की हिफाजत करनी चाहिए. इन कार्यो से व्यक्ति को बैकुंठ मिलता है.

प्रकृति प्रेम के लिए कई लड़ाइयां लड़ी

ऐसा नहीं है कि बिश्नोई समाज प्रकृति प्रेम की सिर्फ बातें करता है, बल्कि समाज ने कई बार प्रकृति की रक्षा के लिए लड़ाई भी लड़ी हैं. इस समाज के लोग वन्य प्राणियों के लिए रियासत काल में भी हुकूमत से लड़ते रहे हैं. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1787 में जब जोधपुर रियासत में सरकार ने पेड़ काटने का आदेश दिया था तो बिश्नोई समाज के लोग विरोध में आ खड़े हुए थे. इसके अलावा बिश्नोई समाज की अमृता देवी ने पहल की और पेड़ के बदले खुद को पेश किया. बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने पेड़ों के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया. वहीं चिपको आंदोलन में भी विश्नोई समाज का अहम योगदान है.

हिरण को दूध पिलाती हैं महिलाएं

आपने देखा होगा कि सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल होती हैं, जिसमें महिला हिरण को अपना दूध पिलाती हुई दिखती हैं. ये महिलाएं बिश्नोई समाज की होती है, जहां हिरण को अपने बच्चों की तरह पाला जाता है और महिलाएं हिरण के बच्चों को अपने बच्चों की तरह पालती है और अपना दूध तक पिलाती है.

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