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बीकानेर, तप के लिए तीन बातें जरूरी है, जब तन में क्षमता हो, मन में समता हो और आत्मा में रमणता हो तब तप होता है। इन तीनों में से किसी में भी कमी हो तो तप नहीं किया जा सकता। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह  सद्विचार बुधवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चातुर्मास पर चल रहे अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। आचार्य श्री ने कहा कि तरूण तपस्विनी,  महासती श्री विनयश्री जी में यह तीनों बातें दिखाई दे रही है, इसलिए इन्होंने  36 दिनों की तपस्या पूर्ण की है।  यह इनके तप का प्रभाव है, इनमें से एक भी कमी रहती तो यह तप नहीं किया जा सकता था। इसलिए तप का बड़ा महत्व है। महाराज साहब ने कहा कि भूखे को रोटी में भगवान नजर आता है। कहा भी गया है, क्षुदा विकार विनाशी रोटी, पेट की भूख रूपी विकार को विनाश रोटी से ही किया जा सकता है। रोटी नहीं तो कुछ भी नहीं, लेकिन जो तप करता है वह इसका निषेद्य करता है, यह कोई कम साधना नहीं होती है। एक अन्य कहावत भी है कि भूखे पेट ना होए भजन, फिर भी जो क्षमता रखते हैं, समता रखते हैं और अपने आप में रमणता रखते हैं, वह भूखे भी भजन करते हैं।
महाराज साहब ने बताया कि जैन धर्म में तप और जप दो प्रमुख अंग है। श्रावक या श्राविका को जितना हो सके तप की साधना करनी चाहिए। जो तप नहीं कर सकते उन्हें जप करना चाहिए, जप का भी बहुत बड़ा महत्व है और प्रभाव भी बड़ा होता है। जप के प्रभाव की शक्ति का एक उदाहरण महाराज साहब ने अमेरिका के नासा  मुख्यालय की एक घटना का प्रसंग सुनाकर बताया। साथ ही बताया कि जहां कोई अस्त्र-शस्त्र काम नहीं आए वहां जप की शक्ति ने एक बहुत बड़े विध्वंश से दुनिया को बचाया था। यह नासा के उस समय के वैज्ञानिक खुद बताते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि जो लोग तप नहीं कर सकते हैं, उन्हें तप करने वालों की अनुमोदना करनी चाहिए। अनुमोदना करने से तप करने वालों को जो पुण्य मिलता है, उसका कुछ भाग अनुमोदना करने वालों को भी मिलता है। इसलिए जो भी तप करे, उसे दिल से धन्यवाद देना चाहिए। इससे मन के अन्तराय टूटते हैं।
6 कायों से बचने का लिया नियम
सेठ धनराज ढ़ढ्ढा  की कोटड़ी में बुधवार को सभी श्रावक-श्राविकाओं के हाथों में रक्षा सूत्र बंधे थे। इन रक्षा सूत्रों के साथ था एक कोरा कागज, उस कोरे कागज पर महासती जी ने सभी से अपने सामथ्र्य अनुसार 6  कायों से बचने के नियम लिखवाए और फिर उन्हें संकल्प दिलाया।

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