बीकानेर, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की साध्वीश्री मृगावती, सुरप्रिया व नित्योदया के सान्निध्य में संवत्सरि महापर्व पर बुधवार को बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं एक दिन पौशध की साधना करते हुए साधु-साध्वी के नियमों की पालना की। साध्वीवृंद ने कल्पसूत्र के मूलपाठ बारासा सूत्र का प्राकृृत भाशा में पाठ किया तथा गाजे बाजे के साथ चैत्य परिपाटी के तहत नाहटा चौक के मंदिर, भुजिया बाजार के चिंतामणिजी मंदिर में जुलूस के साथ दर्शन व पूजा की ।
सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा व चातुर्मास व्यवस्था समिति के संयोजक निर्मल पारख ने बताया कि श्राविकाओं ने सुगनजी महाराज के उपासरे में व श्रावकों ने महावीर भवन में प्रतिक्रमण किया। अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास, बेला, संवत्सरि तेला, श्रीमती आशासुराणा आदि ने अट््ठाई, कन्हैयालाल भुगड़ी ने बिना जल किए हुए (चौवीहार) 21 दिन की तपस्या पूर्ण की। साध्वीवृंद व श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्याओं की अनुमोदना की। गुरुवार को उपासरे में सुबह का प्रवचन नहीं होगा। बुधवार को संवत्सरि के दिन उपासरा खचाखच भरा था अनेक श्रावकों ने उपासरे के बाहर बैठकर बारासा सूत्र का श्रवण किया।
उन्होंने बताया कि तपस्वियों का सामूहिक पारणा गुरुवार को सूरज भवन में तथा अभिनंदन 2 सितम्बर को रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में होगा। गुरुवार शाम छह बजे उपासरे से नाहटा चौक के भगवान आदिश्वर मंदिर तक गाजे बाजे से शोभायात्रा निकलेगी, जिसमें सुश्रावक यशवंत व अनुराग कोठारी महाराजा श्रीपाल का स्वरूप धारण करेंगे। श्रावक-श्राविकाएं हाथों में दीपक लिए हुए चलेंगे। श्रेश्ठ दीपक सज्जा पर उपासरा ट्रस्ट व चातुर्मास व्यवस्था समिति की ओर से पुरस्कृत किया जाएगा।
चैत्य परिपाटी के तहत आदिनाथजी मंदिर में पूजा
बारासा सूत्र के बाद साध्वीश्री मृगावती, सुरप्रिया व नित्योदयाश्रीजी म.सा. के नेतृत्व में गाजे बाजे से शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में अट््ठाई तप साधना करने वाली श्रीमती आशा सुराणा पत्नी अनिल सुराणा रथ पर सवार थीं। वहीं पौशध किए हुए श्रावक साधु सी वेशभूशा में व श्राविकाएं मंगल गीत गाते हुए चल रहे थे। अक्षय निधि तप करने वाली श्राविकाएं सिर पर कलश लिए हुए थीं। मंदिर में साध्वीवृंद के नेतृत्व में भगवान आदिनाथ की स्तुतियों, भक्ति गीतों से वंदना की गई।
मन से करे खमतखामणा
साध्वी मृगावतीश्रीजी प्रवचन में कहा कि संवत्सरि के समापन के बाद देव, गुरु व धर्म की साधना, आराधना व भक्ति को आगे बढ़ाते हुए आत्म चिंतन, आत्मपरीक्षण करते हुए जीवन को जीवंत, मनोहरमय व आलोकमय बनाएं। आपनी साधना आराधना व भक्ति को सिद्ध करें। आपसी मन मुटाव, राग-द्वेश, वैर-वैमनस्य को दूर कर खमतखामणा करें।