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जयपुर। प्रदेश के स्कूलों में लगातार हो रहे छात्राओं पर अत्याचारों को लेकर शनिवार को संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा की ” स्कूलों को शिक्षा का मंदिर कहा गया है, किंतु अब यह अश्लीलता के केंद्र बनकर रह गए है। इन शिक्षा के मंदिरों में अब शिक्षक पढ़ाई से ज्यादा बच्चियों पर अत्याचार करने पर ध्यान दे रहे है। इन शिक्षा के मंदिरों को शिक्षकों के हाथों शमशान बनाया जा रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा और सरकार अंधी, गूंगी और बहरी बनकर छात्राओं की अस्मिता से होते खिलवाड़ का तमाशा देखती रही तो वह दिन दूर नही जब शिक्षा के मंदिर तो होंगे की किंतु उनमें छात्र और छात्राएं नही होगी।

प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की प्रदेश में बच्चियां, छात्राएं और लड़कियां कही भी सुरक्षित नहीं है और ना ही इनकी सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार बिल्कुल भी गंभीर नही है। पिछले 10 दिनों में चार घटनाएं घट चुकी है किंतु ना शिक्षा मंत्री बीड़ी कल्ला की नींद खुली है और ना ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नींद खुली है। 13 फरवरी को कोटा में एक शिक्षक द्वारा 14 साल की बच्ची की हत्या कर दी थी, उसके बाद चार दिन पहले दौसा के लालसोट में स्कूल के अंदर ही बच्ची के साथ छेड़छाड़ का मामला सामने आया और अब शुक्रवार को दौसा और भरतपुर में बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और अश्लीलता के मामले सामने आए। स्कूलों में हो रहे अत्याचारों पर राज्य सरकार के मोन रहने के रवैये से स्पष्ट होता है की राज्य सरकार को बच्चियों की सुरक्षा में कोई दिलचस्पी बिल्कुल भी नही है इसी का परिणाम है मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री हाथ पर हाथ धरे बैठे है।

*बजट में बच्चियों की सुरक्षा को लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने रखी थी मांग*

जयपुर जिला अध्यक्ष युवराज हसीजा ने कहा की स्कूलों में बच्चियों की सुरक्षा को लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सुझाव भेजें थे किंतु मुख्यमंत्री ने अभिभावकों की मांगों को दरकिनार कर अश्लीलता धारी शिक्षकों का संरक्षण करने पर दिलचस्पी दिखाई इसी कारण बच्चियों की सुरक्षा को लेकर कोई प्रावधान नहीं किए। संयुक्त अभिभावक संघ ने अपने सुझावों में प्रदेश के सभी निजी और सरकारी स्कूलों के प्रत्येक कमरों में सीसीटीवी कैमरे की अनिवार्यता, प्रत्येक स्कूलों के प्रत्येक शिक्षक, प्रधानाचार्य, स्टाफ और मैनेजमेंट की अभिभावकों और छात्राओं के सुझावों पर चरित्र प्रमाण पत्र की अनिवार्यता की मांग प्रमुख तौर पर रखी थी। अभिभावकों का मानना है की सरकार इन सुझावों को कानून का रूप देती तो काफी हद तक स्कूलों में बच्चियों को सुरक्षित रखा जा सकता था।

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