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बीकानेर,राजनीति ने समाज से सब कुछ छीन लिया है। बची खुची समाज की अच्छाइयों का राजनीति के भेंट चढ़ाने में हम ही दिन रात लगे हैं। व्यक्ति की पहचान राजनीति के हवाले होती जा रही है। आपकी पूछ किसी नेता के पिछलगु होने पर, नेताओं और पार्टियों के फॉलोवर्स होने से है। आपके व्यक्तित्व के बलबूते नहीं हो सकती ?निस्वार्थ भाव से समाज और मानवता की चुपचाप सेवा करने वाले समाज सेवकों का समाज ही सम्मान नहीं करता। भले ही मंत्रियों की चमचागिरी करने वाले छुट भैय्या नेताओं को हम सलाम कर लेंगे, परंतु समाज सेवा करने वालों को सम्मान नहीं देंगे। समाज सेवक का अगर राजनीतिक जुड़ाव नहीं है तो उसकी कोई आवाज नहीं होती। समाज सेवा, शिक्षा, राष्ट्र सेवा करने वाले किसी भी निस्वार्थ व्यक्ति की एक किसी भी पार्टी में नेतागिरी करने वाले के सामने कोई विसात होती है क्या? दरअसल संपूर्ण राष्ट्रीय जीवन पर राजनीति इतनी हावी हो गई है कि सब चीजें राजनीति के आईनें से ही देखी जाने लगी है। नेता हमारा आदर्श बना दिया गया है। सत्ता की ताकत सब मूल्यों से बहु मूल्यवान हो गई है। व्यक्ति की पहचान भी राजनीति और सत्ता के अक्ष से ही होती है। यह मानव समाज और जीवन मूल्यों के समक्ष विडंबना नहीं है? बीकानेर में कुछ लोगों के प्रयासों से बिना समाज पर अहसान जताए कई सेवा प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। मान , बड़ाई प्रतिष्ठा से दूर चुपचाप सेवाएं दी जा रही है। निस्वार्थ सेवा है। विडंबना है कि समाज उनको जानता तो है, परंतु मानता नहीं है। वहीं कई लोग समाज सेवा के नाम पर जमकर राजनीति लाभ उठाए जा रहे हैं। उद्देश्य तो समाज सेवा बताया जा रहा है, लेकिन दुर्भाग्य समाज सेवा मात्र राजनीति महत्त्वाकांक्षा पूरी करने की आड़ है। कई लोग समाज के संगठन का इस्तेमाल खुद को राजनीति में स्थापित करने के लिए कर रहे हैं। ऐसे ही सेवा संस्थान खड़े कर उसका राजनीति में अथवा निजी कामों में साख के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा हैं। हालांकि सेवा संस्थाओं का लाभ तो जरूरतमंदों को ही मिलता है। इससे समाज को नुकसान और समाज का इस्तेमाल करने वालों को व्यक्तिगत लाभ हो रहा है। ऐसे समाज सेवक भी हैं जो गरीब परिवारों के दुख दर्द में हाजिर खड़े रहते हैं। एक व्यक्ति बीकानेर में ऐसा है वो साइकिल पर दाना, पानी और चोटिल पशु पक्षियों के लिए दवा लेकर निकलता है। दिनभर सेवा करता घूमता है। अस्पतालों में भी जरूरतमंद की सेवा करने वाले लोग है। समाज के दुख दर्द को अपना समझकर सहयोग और सहायता में जुटने के संस्कार मिटे नहीं है। एक ऐसा नेता जो मंत्री का रिश्तेदार या निकट का आदमी है या चार अफसरों की हाजरी भरने या जोड़ तोड़ से अहमदे की टोपी महमदे पर रखने में माहिर नेता को अफसर भी सलाम करते हैं और समाज भी। मानवता की सेवा और समाज के कामों में निस्वार्थ काम करने वाले लोगों को समाज कम ही तरजीह देता है। समाज सेवक से नेता बड़ा माना जाता है। यह विकृति क्यों हैं? इसका नुकसान समाज को ही उठाना पड़ रहा है। क्या समाज राजनीतिक आईने से बाहर भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को मानेगा ? यह समाज के सामने गंभीर सवाल है।

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