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बीकानेर,पीबीएम अस्पताल में अव्यवस्थाओं का आलम है। मरीजों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। इंसान को मौत के बाद भी सुकून नहीं है। कोरोना के बाद से की गई व्यवस्था आमजन के लिए काफ़ी पीड़ादायक है। मरीज या हादसे में घायल की मौत होने पर उसका शव घंटों आपातकालीन में पड़ा रहता है। शव शिफ्ट नहीं करने की मामूली-सी वजह है लेकिन अस्पताल प्रशासन इसका समाधान नहीं कर रहा है। शव का रजिस्टर में इन्द्राज करने के बाद पीबीएम अस्पताल की मोर्चरी में शिफ्ट किया जाता है लेकिन पिछले डेढ़ साल से इस सालों पुरानी व्यवस्था को कोरोना के कारण बदला गया। कोरोना खत्म हो गया लेकिन अस्थायी व्यवस्था अभी तक बहाल है। इसके चलते घंटों तक शव मोर्चरी में शिफ्ट नहीं किया जाता, जिससे मृतक के परिजनों की पीड़ा बढ़ती है।

पीबीएम अस्पताल में पहले मेडिसिन आपातकालीन वार्ड, शिशु अस्पताल, टीबी अस्पताल, कैंसर अस्पताल, हॉर्ट हॉस्पिटल एवं ट्रोमा सेंटर का डेथ रजिस्टर अलग-अलग था। इन जगहों पर अगर किसी मरीज की मौत होती थी तो वहां एक रजिस्टर में उसका पूरा विवरण अंकित किया जाता था। शव को मोर्चरी ले जाने वाले स्वीपर और वहां पर शव को हैंडओवर करने वाले कर्मचारी का नाम तक अंकित किया जाता था। उसके बाद शव को पीबीएम अस्पताल की मोर्चरी में शिफ्ट किया जाता था।

कोरोना के बाद पीबीएम अस्पताल प्रशासन ने सभी विभागों का शव विवरण अंकित रजिस्टर एक ही कर दिया है। ऐसे में मेडिसिन आपातकालीन वार्ड में किसी मरीज की मौत हो जाती है और इसी दरम्यान ट्रोमा सेंटर या अन्य किसी विभाग में मरीज की मौत हो जाती है तो पहले रजिस्टर फोरेंसिक विभाग (मेडिकल ज्यूरिस्ट) से लेने जाना पड़ता है। रजिस्टर किसी और विभाग में गया हुआ होता है तो पहले वहां लेने जाना पड़ता है। वहां किसी शव का रजिस्टर में इन्द्राज किया जा रहा होता है तो तब तक इंतजार करना पड़ता है जब तक वह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। ऐसे में एक ही रजिस्टर सभी विभागों में घुमता रहता है। इन हालातों में शव आपातकालीन वार्ड में पड़ा रहता है। मृतक के परिजनों की भीड़ बढ़ती रहती है। वार्ड में परिजन रोने लगते हैं। ऐसे में दूसरी मरीजों और परिजनों का भी मनोबल गिरता है।

रजिस्टर की वजह से शवों को घंटे-डेढ़ घंटे तक मोर्चरी में शिफ्ट नहीं किया जा रहा। पीबीएम अस्पताल प्रशासन ने अपनी सुविधा से यह व्यवस्था कर रखी है जो गलत है। प्रशासन को चाहिए कि शव विवरण रजिस्टर ट्रोमा और मेडिसिन आपातकालीन वार्ड में रखें ताकि किसी की मौत होने पर रजिस्टर में इन्द्राज कर तुरंत मोर्चरी में शिफ्ट किया जा सके। प्रशासन मृतक के परिजनों की पीड़ा को समझे।आदर्श शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता

दुख उसे जिसने अपना खोया हादसे में युवक की मौत के बाद उसके रिश्तेदार ने अपनी पीड़ा बताई। उसने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता कोई मरे या जीये। दुख उसे होता है, जिसने अपना खोया है। एक तो घर का सदस्य चला गया और ऊपर से प्रशासन ने मानवीय संवेदनाओं को कचोटती व्यवस्था है। प्रशासन मृतकों के संबंध में व्यवस्थाओं में ढील करें। लोगों की पीड़ा कम करें, उन्हें प्रताडि़त नहीं करें।

केस एक :लूणकरनसर तहसील क्षेत्र के एक व्यक्ति की हादसे में मौत हो गई। परिजन शव को लिए करीब डेढ़ घंटे तक ट्रोमा सेंटर के बार ही बैठे रहे लेकिन शव को मोर्चरी में शिफ्ट नहीं किया जा सका। बाद में स्वीपर व रजिस्टर के आने के बाद शव को मोर्चरी में शिफ्ट किया जा सका।

केस दो :जेएनवीसी थाना क्षेत्र में पखवाड़ेभर पहले एक महिला की हादसे में मौत हो गई। परिजन शव को लेकर ट्रोमा सेंटर के बाहर एम्बुलेंस में ही बैठे रहे। पौने दो घंटे बाद शव का विवरण लिखा जाने वाला रजिस्टर ट्रोमा सेंटर में लाया गया उसके बाद ही मोर्चरी में शिफ्ट किया जा सका।

अलग-अलग रजिस्टर होने से रिकॉर्ड मेंटन नहीं हो रहा था। शवों का परोपर रिकॉर्ड रखने के लिए एक रजिस्टर की व्यवस्था की गई है। इससे शवों को लेकर किसी तरह की चूक नहीं हो रही है। एक रजिस्टर की व्यवस्था से किसी तरह की परेशानी हो रही है तो इस बारे में फिर से दो रजिस्टर संधारण करने की व्यवस्था को लागू कर देंगे।
डाॅ. पीके सैनी, अधीक्षक पीबीएम अस्पताल

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