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बीकानेर.सात करोड़ लोगों की बोली राजस्थानी भाषा का इतिहास कई सौ साल पुराना है. आजादी के पहले से इस भाषा की मान्यता को शुरू हुआ आन्दोलन आजादी के 8वें दशक में भी यह भाषा अपनी मान्यता के लिए संघर्ष कर रही है. इसकी मांग हर साल हर दिन मांग उठती है, लेकिन आज तक यह मांग केवल कागजों तक ही सिमटी हुई है.

राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए राजस्थान विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पारित किया है, फिर भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता से वंचित रखा गया है. हालांकि अब तक इसको मान्यता नहीं मिलने के पीछे के कारण क्या है? इसके बजाय चर्चा इस बात पर हो कि ऐसा इस भाषा में क्या है? जिसे लेकर भाषा को संवैधानिक दर्जा देने की पैरवी की जा रही है.

जुबां पर केसरिया बालम : राजस्थानी मोट्यार परिषद उपाध्यक्ष डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने बताया कि राजस्थानी भाषा कितनी समृद्ध है और इसका दायरा कितना विशाल है उसकी बानगी मीरा की कृष्ण के प्रति भक्ति में राजस्थानी भाषा में रचे गए दोहे से मालूम होता है. इसकी स्वीकार्यता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देश-विदेश से आने वाले मेहमानों के स्वागत में किसी भी सरकारी गैर सरकारी सांस्कृतिक कार्यक्रम में ‘केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश’ गीत गाया जाता है.डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि इस कालजयी गीत को स्वर देकर राजस्थानी की पहचान बनाने वाली बीकानेर की मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई थीं. केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारे देश गीत राष्ट्रीय स्तर पर आकाशवाणी पर सबसे पंसदीदा गीत रहा है. उन्हें राजस्थान की स्वर कोकिला कहा जाता है. उन्होंने आगे बताया कि साल 1987 में लदंन में अंतरराष्ट्रीय लोक संगीत कार्यक्रम में 20 देशों के लोक कलाकारों और हजारों श्रोताओं की उपस्थिति में अल्लाह जिलाई बाई ने बिना माइक के केसरिया बालम और बाई सा रा बीरा जैसे लोकगीत करीब एक घंटे तक गाया. उनके गायन से मंत्रमुग्ध होकर लोगों की आंखों में आसूं आ गए. उनके ये गीत इसी राजस्थानी भाषा में थे.

अल्लाह जिलाई बाई को जानिए: अल्लाह जिलाई बाई का जन्म एक फरवरी 1902 को बीकानेर के जयसिंहदेसर मगरा में हुआ था. 90 साल की उम्र में 3 नवंबर 1992 को अल्लाह जिलाई बाई का निधन हो गया. जिलाई बाई को 1982 में भारत सरकार ने पद्म श्री से नवाजा. उन्हें राजस्थान श्री और राजस्थान रत्न जैसे सम्मान भी मिले. भारतीय डाक विभाग ने स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया. बीकानेर रियासत की राज गायिका के रूप में ख्याति अल्लाह जिलाई बाई ने 13 साल की उम्र में राज दरबार में गाना शुरू कर दिया था. उन्होंने 22 साल तक तत्कालीन राज दरबार में गायन किया.संस्कृति को मान तो भाषा को क्यों नहीं: राजस्थानी मोट्यार परिषद राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए लगातार संघर्ष कर रही है. परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर प्रजापत कहते हैं कि राजस्थानी भाषा संस्कृति कितनी संबंध है इस का बखान करना मुश्किल है. वे कहते हैं कि राजस्थान में कहीं भी कोई भी पावना आता है तो सरकार उसके स्वागत सरकार में राजस्थानी संस्कृति की बात करती है और देश दुनिया में राजस्थान की संस्कृति तो दिखाया जाता है, लेकिन राजस्थान की बोली को अपनाने में सब को परेशानी हो रही है. डॉ. गौरी शंकर प्रजापत कहते हैं जी-20 का जोधपुर में और उदयपुर में हुए आयोजन में भी देशी विदेशी मेहमानों को राजस्थानी संस्कृति को दिखाया गया, लेकिन उसी राजस्थान की बोली को मान्यता नहीं मिल रही है.

धर्म साहित्य दर्शन जीवन राजस्थानी: राजस्थानी भाषा साहित्यकार रेणुका व्यास ने कहा कि राजस्थानी भाषा कितनी समृद्ध है इसकी बानगी यह भी है कि हमारे पंथ दर्शन जीवन में धर्म गुरुओं संतों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी है जो हमारे जीवन दर्शन का आधार है. लेकिन सरकारों के स्तर पर इसकी उपेक्षा होना आज भी समझ से परे हैं.

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