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बीकानेर,व्याधि भुगतते और शारीरिक पीड़ा से कराहते व्यक्ति डाक्टर से उम्मीद करते हैं कि डाक्टर उनके साथ संवेदनशीलता और इंसानियत का व्यवहार करें। यह कटु सत्य है कि डाक्टरी पेश हो गया है। मानव व मानवता के सेवा की भावना कितने डाक्टरों में बची रह गई है यह जनता ने कोरोना काल में निकट से जान लिया। डाक्टर भी पेश के एथिक्स और डाक्टरों की इंसानियत कितनी बची है यह बताने की जरूरत नहीं है। हालांकि मानवता और ईमान को जीने वाले डाक्टर भी हैं। यह सच है कि नैतिक पतन पूरे समाज में हुआ है। सवाल उठता है कि पत्रकार, वकील, शिक्षक, जनप्रतिनिधि जो समाज के प्रति सीधे जिम्मेदार है उनके एथिक्स कहा गए ? कड़वा सवाल है जवाब किसी के पास नहीं है। फिर बेचारे डाक्टरों की प्रतिष्ठा और नैतिकता खोने पर ही सवाल क्यों ? मेडिकल प्रोफेशन में अनैतिकता थम ही नहीं रही है। राजस्थान के मेडिकल कालेज से संबद्ध बड़े अस्पतालो के नामी गिरामी सरकारी डाक्टरों ने घरों में अथवा अपनी खुद की अस्पतलें, लैब और दवा की दुकाने खोल रखी है। सरकारी अस्पताल में ड्यूटी टाइम से ज्यादा पेशेंट वे घर पर देखते हैं। हालांकि सरकार ने पेशेंट घर में देखने की छूट दे रखी है। परंतु इसका खामियाजा अस्पताल में आने वाले लोगों को भुगतना पड़ता है। बहुत सारे डाक्टर तो अस्पताल की ड्यूटी में कैसा व्यवहार करते हैं भुगत भोगी ही जान सकते हैं। जांचों में कमीशन, दवाओं में कमीशन कोई छिपी हुई बात नहीं है। कई डाक्टरों ने पैसे कमाने की इस प्रतिस्पर्धा में सारी नैतिकता और पेशे की प्रतिष्ठा ताक पर रख दी है। खुले आम वो सब कर रहे हैं जो किसी प्रतिष्ठा और नैतिकता रखने वाले डाक्टर को नहीं करना चाहिए। हद तब होती है कि सरकारी अस्पताल में भी रोगी का इलाज तब होता है जब रोगी डाक्टर को घर दिखा चुका होता है अन्यथा उसकी सुध लेना वाला कोई नहीं होगा। मेडिकल प्रोफेशन में इस तरह के कोकस से पार पाना अब सरकार के बूते से बाहर है। रोगियों की जांच में कमाई के लिए अलग गिरोह, दवा में कमीशन का अलग गिरोह और तो और गंभीर रोगियों को महानगरों के बड़े निजी अस्पतालों में रेफर करने, एंबुलेंस संचालन से लेकर पूरा मेडिकल प्रोफेशन कमाई के चक्रव्यू से घिरा हुआ है। फिर जो डाक्टर अपने संस्कारों और ईमान को सामने रखकर सेवा भी करते हैं तो उनका काम धुंधला जाता है। जनता तो मेडिकल प्रोफेशन की गिरोह बंदी को ही भुगत रही है। सरकार और निगरानी व्यवस्था बेबस हो गई है। प्रोफेशन की प्रतिष्ठा और नैतिकता धूमिल हो रही है। कोई तो जागो री।

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