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बीकानेर, गाँधीजी का जीवन सत्य, प्रेम, परोपकार, शुद्ध आचरण एवं स्वावलम्बन का सर्वोत्तम उदाहरण है। गाँधीजी के विचारों, सिद्धान्तों व दर्शन की प्रासंगिकता जितनी पहले थी, उससे कहीं अधिक आज है। विश्व में शांति, भाईचारे की स्थापना के लिए गाँधीजी के बताए मार्ग पर चलना आवश्यक है।

ये विचार साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की ओर से शुक्रवार को गाँधी जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘मौजूदा जुग-दरसाव मांय गाँधीजी’ विषयक ऑनलाइन राजस्थानी संगोष्ठी में रखे।
संगोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भरत ओला ने कहा कि आज पूरा विश्व बारूद के ढेर पर बैठा है, केवल गाँधीजी के बताए मार्ग पर चलकर ही सर्वनाश से बचा जा सकता है। धरती, मानव, प्रकृति को बचाना है तो पूरे विश्व को गाँधीजी के विचारों-दर्शन को अपनाना व आत्मसात करना होगा। डॉ. ओला ने कहा कि गाँधीजी ने समस्त भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश हित में कार्य किया। वे सभी धर्मां का आदर करते थे। वे गांवों व किसानों का सर्वांगीण विकास चाहते थे। मौजूदा वक्त में बढ़ रहे सांप्रदायिक तनाव, हिंसा, जातिवाद, उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्परिणामों को गाँधी-दर्शन अपनाकर समाप्त किया जा सकता है। राज्य सरकार द्वारा गाँधीजी के विचारों को आमजन तक पहुंचाने के सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि गाँधीजी के विचार सदैव जीवित रहेंगे, आज गाँधीजी की प्रासंगिकता और अधिक है। उन्होंने सत्याग्रह की अवधारणा को देश-दुनिया को समझाया। गाँधीजी ने सत्य, अहिंसा, समानता, रामराज्य, सांप्रदायिक सौहार्द की महत्ता प्रतिपादित की और छुआछूत-जातिवाद का विरोध किया। उन्होंने व्यक्ति के नैतिक चरित्र को सशक्त करने व सदाचारी समाज की रचना पर बल दिया।
गाँधी जीवन दर्शन समिति, चूरू के जिला संयोजक दुलाराम सहारण ने कहा कि गाँधीजी ने देश को एकसूत्र में बांधा। उन्होंने अन्याय का विरोध करने की सीख देते हुए, आमजन को अंग्रेजों का मुकाबला करने का साहस दिया। सहारण ने कहा कि अपने आत्मबल को सशक्त कर व सकारात्मक दिशा देकर हर व्यक्ति गाँधी बन सकता है। गाँधीजी का सपना था कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुंचे।
कार्यक्रम का संयोजन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि गाँधीजी जीवन के समस्त क्षेत्रों में असमानता के विरोधी थे। उनका मानना था कि अहिंसा वीर का सर्वोच्च गुण है, यह कायरता की आड़ नहीं है। अहिंसा के मार्ग का प्रथम कदम यह है कि हम अपने दैनिक जीवन में सहिष्णुता, सच्चाई, विनम्रता, प्रेम और दयालुता का व्यवहार करें। गाँधी-दर्शन पीड़ित, दुखी, उपेक्षित लोगों को शोषण से राहत दिलाकर, उनके उत्थान का दर्शन है।
अकादमी सचिव शरद केवलिया ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि विश्व में फैले हिंसा व अशांति के इस वातावरण में गाँधीजी के सत्य, अहिंसा, देशभक्ति, सर्वधर्म सद्भाव संबंधी विचार अमन-चैन के लिए बेहद जरूरी हैं। गाँधीजी मानव-सेवा को जीवन का महत्वपूर्ण कार्य मानते थे। वे स्वदेशी, स्वराज्य, सर्वोदय, खादी के माध्यम से आमजन को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे।
अकादमी के सूचना सहायक केशव जोशी ने आभार व्यक्त किया। युवा साहित्यकार जाह्नवी केवलिया ने संगोष्ठी आयोजन में तकनीकी सहयोग प्रदान किया। इस दौरान कमल रंगा, डॉ. नीरज दैया, डॉ. मिर्जा हैदर बेग, डॉ. संजू श्रीमाली, अमित मोदी, अनुराधा स्वामी, अमिता सेठिया, पूजा कंवर, अर्पित सुथार, गुलाब सिंह, मनोज मोदी, कानसिंह, नीरज वर्मा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकारों-आमजन ने ऑनलाइन माध्यम से संगोष्ठी में भाग लिया।
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