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बीकानेर,आमतौर पर होलाष्टक में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यक्रम नहीं होते,लेकिन बीकानेर में धुलंडी के दिन बारात निकलती है,वाक्यादा पटाखे छोड़े जाते है और बैड की धुन पर विष्णुरूपी दुल्हा ने अनेक घरों में दुल्हन की तलाश में जाता है। लेकिन दुल्हा बिना शादी के ही लौट जाता है। दूल्हा और बारात निकलने की दशकों पुरानी इस परम्परा में बारात के साथ न केवल दूल्हा विष्णुरूप में शामिल होता है, बल्कि कई निर्धारित मकानों के आगे दूल्हे को पोखने और महिलाओं की ओर से विवाह के मांगलिक गीत गाने की भी परम्परा है। दूल्हे और बारातियों की मान-मनुहार भी होती है, लेकिन दूल्हा बिना शादी के पुन: लौट आता है। बारात में दूल्हे के घर-परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ जाति व समाज के लोग भी शामिल होते है। ओंकारनाथ हर्ष के अनुसार आपसी प्रेम और सौहार्द के प्रतीक रूप में हर साल धुलंडी के दिन हर्ष जाति की ओर से विष्णुरूपी दूल्हे की बारात निकाली जाती है। दूल्हा हर्ष जाति का युवक होता है। मोहता चौक भैरव मंदिर के पास से बारात रवाना होती है, जो मूंधड़ा चौक, लालाणी व्यास चौक, कीकाणी व्यास चौक सहित आसपास के क्षेत्रों से निकलती है व पुन:मोहता चौक पहुंचती है। बारात में दुल्हे पक्ष वाले केसरिया लाडो जीवन्तों रे..के मांगलिक गीत गाते है। ऐसी मान्यता है कि जो दुल्हा बनता है उसकी एक साल में विवाह हो जाता है।

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