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बीकानेर,माना कि डबल इंजन सरकार की ज़बरदस्त उपलब्धिया हो रही हैं। राजस्थान भी विकास के आयाम छूने लगा हैं। बड़े- बड़े समाचार पत्रों को एक एक पेज के दिये गये विज्ञापन यह सब दर्शा रहे हैं। छोटे पत्रो को विज्ञापन न देने की क़सम खा ली हैं उन्हें दर किनार कर दिया गया हैं। लेकिन यह कहावत लोग क्यूँ भूल जाते हैं कि चींटी भी हाथी को धराशायी कर सकती है। ख़ैर सरकार ने घाटे से उबार कर रेलवे का काया कल्प किया हैं। अमृत भारत योजना में राजस्थान के २१ स्टेशनों का विकास हुआ हैं। जिसमे बीकानेर मण्डल में चार ओवरब्रिज २ अण्डरपास भी हैं। २६ फ़रवरी को प्रधानमन्त्री ने वीडियो कॉन्फ़्रेंस से बीकानेर मण्डल की २२ रेल परियोजनाओं का शिलान्यास किया। बीकानेर के लूणकरणसर बामनवाली में अंडरब्रिज का लोकपर्ण, सुड्सर आरयूबी का लोकपर्ण और नोखा में ४ ओवरब्रिज , अंडरपास का वर्चुअल शिलान्यास भी किया गया। लेकिन इन सबके बीच बीकानेर शहर के लिए सरदर्द बने रेल फाटको को हटाने की किसी को भी सुध न रही। यहाँ की बरसों पुरानी समस्या शहर के बीचो- बीच दिन में-२४- बार बन्द होते रेल फाटक, फिर लगता जाम, और फिर ठहर जाता बीकानेर। यह सब किसी को नज़र नहीं आया। बरसों पहले शहर के बीचो- बीच रेल लाइन को हटाने और बाईपास के लिए जन संघर्ष समिति के बैनर तले रामकिशन गुप्ता एडवोकेट के नेतृव में धरना और अनशन किया गया था। इन्हें सभी राजनीतिक दलों और शहरवासियों का समर्थन प्राप्त था। साल भर चले इस आन्दोलन से प्रभावित होकर तत्कालीन केंद्रीय रेल मन्त्री जाफ़र शरीफ और मुख्य मन्त्री भैरोंसिंह शेखावत बीकानेर आये और इसके निदान के लिये बाईपास बनाने की घोषणा की। लेकिन घोषणा कागजो में सिमटी रही। समय के साथ मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे ओवरब्रिज की योजना लेकर सामने आई। लेकिन वो भी कागजो में फ़ाईल हो गई। पूर्व नगर विकास न्यास के अध्यक्ष मक़सूद अहमद अंडरब्रिज का सोच लेकर आये लेकिन वो किसी के सिरे नहीं चढ़ी। एक बार तो डॉ. बी डी कल्ला इस समस्या के लिए बाईपास बनाने हेतू क्लेक्ट्रेट के सामने अनशन पर बैठे। लेकिन मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे के बुलावे पर अनशन छोड़ वे लालगढ़ पहुँचे। मुख्यमन्त्री से क्या बातचीत हुई, किसी को नहीं पता लेकिन उसके बाद कल्ला जी ने अनशन तोड़ दिया, धरना हटा दिया। वसुन्धरा और कल्ला की बातचीत का रहस्य- रहस्य ही रहा। अब बात करे केन्द्रीय मन्त्री श्री अर्जुन मेघवाल की। जो मोदी जी के बहुत क़रीब हैं। उन्हें अब चुनाव में लोकसभा का टिकट भी मिल गया हैं मोदी जी की वजह से वे जीत भी जाएँगे। लेकिन क्या वो इस समस्या का निदान कर पायेंगे। शायद नहीं ! क्योंकि पिछले१० सालों से यह कुछ कर नहीं पाये। इनसे बहुत उम्मीद थी कि ये मोदी जी को कहकर रेल फाटको की समस्या का निदान ज़रूर करा देंगे। क्योंकि पिछले दस सालों से चुनाव घोषणा पत्र में उनकी पहली घोषणा यही हुआ करती थी कि वो रेल फाटको से जूझते बीकानेरवासियो को अवश्य निदान दिलवा देंगे। लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। उनका मोदी- संग – प्रेम भी काम नहीं आया। अब चुनाव में वे फिर यही राग अल्पायेगे। और पक्का वायदा भी करेंगे। लेकिन वायदे का क्या? वो तो होते ही तोड़ने के लिए । बीकानेर की जनता तो इसे नियति मान कर आस छोड़ चुकी हैं। लेकिन हम क्या करे, हमसे तो चुपचाप बैठा नहीं जाता। हमारी कोशिश रहेंगी कि ये सूरत अब तो किसी हालत में बदलनी चाहिए। बहुत हो गया हमारी एक पीढ़ी यह सोच- सोच कर स्वाह हो गईं। भगवान को प्यारी हो गई। कुछ लोग जो इसकी राह रोके खड़े हैं, उन्हें हाथ जोड़कर नमन करते हुए और तनकर चलते हुए हमारी कलम तो चलती रहेंगी और इनकी आत्मा को झकझोड़ती रहगी।

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