बीकानेर,१५ फ़रवरी को मेरा जन्म दिन था इस दिन मैं ८० वर्ष का हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्म दिवस पर हैप्पी बर्थ- डे संदेश के साथ खूब यार लोगो की शुभकामनाएँ मिली। उन सब का आभार। इन वर्षों में मैंने बहुत कुछ देखा, सीखा, अनुभव किया। अच्छे- बुरे की पहचान हुई। अपने पराये हुए, पराये अपने हुए। कभी ख़ुशी, कभी ग़म और जीवन के अनेक रंगों का अहसास किया। चार साल का था देश को विभाजित होते देखा। विभाजन की पीड़ा को भुगता। बीकानेर की पवित्र धरती को प्रणाम जिसने हमे सड़क से उठाकर समाज में उचित स्थान दिलाया। बेघर होकर, सब कुछ छोड़ कर आए थे हम यहाँ , और अपनी मेहनत और ईमानदारी से बहुत कुछ पा लिया। कभी फुटपाथ पर कपड़े बेचकर, कभी केलैंडर बेचकर, कभी ठेला लगाकर, स्ट्रीट लाइट में पढ़कर, माँ के कपड़ों की सिलाई- पिता की कड़ी मेहनत, मज़दूरी से आज वो सब कुछ हासिल हो गया जिसकी तमन्ना थी। बहुत कुछ दिया है देने वाले ने हमको । धन दौलत ,नाम, पैसा, यश कीर्ति। शुक्रगुज़ार हैं हम ऊपरवाले के जिसने हमे सही रास्ते पर चलना सिखाया। पिताजी ने भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से समाज में वो मुक़ाम हासिल किया जो बड़ी मुश्किल से मिलता हैं। वे बीकानेर के प्रमुख व्यवसायीं बने। व्यापार जगत के वे बुलन्द सितारे थे। उन्होंने भी अपने पुत्र- पुत्रियों को भी उच्च शिक्षा दिलाई। उनके संस्कार मुझमें भी आने स्वाभाविक थे। कुछ समय तक उनके साथ व्यवसाय में जुड़ा रहा, फिर बैंक की नौकरी की, लेकिन तक़दीर में कलम पकड़नी लिखी थीं। कई अखबारो से जुड़ गया। और फिर अपना अख़बार बीकानेर एक्सप्रेस भी निकाला। सच्चाई के मार्ग पर निडरता से चलता गया। आगे बढ़ता गया। कभी किसी दबाव या फिर किसी अनुचित लाभों से प्रेरित नहीं हुआ। कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारे, सच्चाई के मार्ग पर चलता गया। लेकिन सच्च कड़वा होता हैं और सच्च का सामना करना उतना ही मुश्किल। तत्कालीन कलक्टर रमाकान्त शर्मा एक बार कलकता दमदम हवाईअड्डे पर विदेश जाते हुए बहुमूल्य कलाकर्तियों के साथ पकड़े गये जब हमने उनकी गिरफ़्तारी के समाचार को बीकानेर एक्सप्रेस में छापा तो उन्होंने मेरे पिताजी की फ़र्मो पर छापे डलवा दिए , मेरे ख़िलाप अनर्गल आरोप लगाकर वारंट जारी करवा दिए। मेरे सम्पर्ण और कोर्ट से बाँ- इज्जत बरी होने और, कलक्टर के इस कार्य की निंदा होने पर और उसी दिन कलक्टर महोदय की कार दुर्घटना होने और उनका फिर कोमा में जाने को मैं ईश्वरीय चमत्कार ही मानता हूँ। उनके कई माह बाद होश आने पर जब मैं उनसे अस्पताल में मिला तब उन्होंने हाथ जोड़कर अपना अभिवादन दिया। कलम की निडरता ने मुझे और मेरे परिवार को कई बार अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन मैंने सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा। यहाँ तक कि एक बार एक कड़वी न्यूज़ पर एक कॉलेज के छात्रो ने मेरी प्रेस में आग लगा दी , मेरे घर पर तोड़- फाड़ की। फिर हक़ीक़त सामने आने पर उन्होंने सामूहिक रूप से माफ़ी माँगी। इधर कलम ने ही मुझे पीआरओ बनाया। कलम की वजह से ही आरपीएस में मेरा सेलेक्शन हुआ। नौकरी लगने पर अख़बार भाई के नाम किया लेकिन उसके संचालक रहे पूर्व मंत्री महबूब अली- अशोक आचार्य- डॉ. बी डी आचार्य। फिर उसमे छपी एक सच्ची घटना ने मेरी पीआरओ सेवा में रोड़े अटकाए और मेरे पिताजी की फ़रमों पर छापे। उसमे छपी एक सच्ची न्यूज़ मेरे मित्र मन्त्री को कड़वी लगी और उन्होंने उसे प्रेस्टीज इशू बनाकर कम से कम मेरे दस से ज़्यादा ट्रांसफ़र करवाये और मेरे पिताजी की फ़र्मो पर अनेक छापे पड़वा कर बहुत प्रताड़ित किया । लेकिन बन्दा हमेशा ईश्वर पर भरोसा करता रहा। सत्य हमेशा जीतता रहा और झूठ की हमेशा हार हुई। ऐसा ही मेरा पीआरओ सेवा काल में हुआ। सभी आका तो ईमानदार होते नहीं। एक बार मैं निदेशालय की की- पोस्ट पर था। आका महोदय चाहते थे कि कुछ हेरा- फेरी कर उनके घर में कूलर- टीवी- डाइनिंग टेबल – खिड़कियों, दरवाजे के पर्दे लगवा दिए जाए लेकिन मेरे मना करने पर पद के दुरप्रयोग के आरोप मुझ पर लगाकर मुझे गिरफ़्तार करवाने और नौकरी से निकलवाने के प्रयास भी किए गए। लेकिन सच के सामने आते ही आका महोदय का तत्काल प्रभाव से तबादला कर दिया गया। मैं आभारी हूँ माननीय पूर्व मुख्य मन्त्री श्री भैरोसिंह शेखावत का जिनके दखल से सत्य सामने आ गया। पत्रकारिता और जनसम्पर्क सेवाओं के कारण मुझे देश की महान विभूतियों से मसलन श्रीमती इंदिरा गांधी, इन्द्र कुमार गुजराल , मोरारजी देसाई , राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा- और तो और भारत आये अमरीका के राष्ट्रपति बिल – क्लिंगटन से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्रीं मोहनलाल सुखदिया, हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर, भैरोसिंह शेखावत, और अशोक गहलोत का निकट से सानिध्य मिला। सेवानिर्वती के बाद बीकानेर आकर यूएनआई न्यूज़ एजेंसी से जुड़ा और अपना अख़बार पुनः: सम्भाला। उम्र के इस पड़ाव में कैंसर रोग से पीड़ित होकर भी बीकानेर एक्सप्रेस अख़बार निकालना नहीं छोड़ा। मेरा सारा ध्यान दर्द की और न जाकर अख़बार की और एकाग्र हो गया। कलम ने मेरा दर्द दूर कर दिया। कलम से मुझे प्यार हो गया। कवि दुष्यन्त के शब्दों में – हालात देखते हुए- अपनी कलम उठाकर रख देवे या फिर इसको अपना हक़ देवे। मैंने इसे अपना हक़ देने की कोशिश की हैं। अब पाठको की दुवाओ से मैंने८० पार कर लिया हैं। आभारी रहूँगा उस ईश्वर का जिसने इस मुक़ाम तक मुझे पहुँचाया। भूलूँगा नहीं ता- ज़िन्दगी आपको-और आपके प्यार और स्नेह को भी जिन्होंने मेरे अन्दर नई ऊर्जा का संचार किया। । ——- मनोहर चावला
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