बीकानेर, केस एक :- नोखा थाने में परिवादी के साथ दुव्र्यवहार किया गया। पीडि़त पर राजीनामा करने का दबाव बनाया। इतना ही नहीं कार्रवाई करने के लिए पुलिस कर्मचारी ने रुपयों की मांग तक की। पीडि़त ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की तब उसे लाइन हाजिर करना पड़ा।
केस दो :- सदर थाना क्षेत्र में रानीसर बास निवासी एक युवक बाइक चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने गया। उसे दो-तीन बार थाने बुलाया लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं की। बाद में उसे यह कहकर टरका दिया कि दो-तीन बाइक तलाश कर लो नहीं मिली तो रिपोर्ट दर्ज करा देना।
केस तीन :- कोटगेट थाने में हेलमेट चेकिंग के दौरान एक युवक को थाने में ले जाकर बेरहमी से मारपीट की गई। पीडि़त ने इस संबंध में पुलिस अधीक्षक से भी शिकायत की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बीकानेर। पुलिस की कार्यशैली एवं छवि को सुधारने, थानों में परिवादियों के साथ होने वाले व्यवहार की सत्यता जांचने के लिए प्रदेश मुख्यालय से तीन साल पहले शुरू की गई थानों का स्टिंग योजना खटाई में हैं। न थानों का स्टिंग हो रहा है ना औचक निरीक्षण। थानों में पुलिस की कार्यशैली अभी भी अंग्रेजों के जमाने के ढर्रे पर चल रही है। परिवादियों के साथ व्यवहार भी ऐसा कि जैसे वह अपराधी हो। इस तरह के कई उदाहरण आए दिन हमारे सामने पेश होते हैं। हाल ही के ताजा मामला गजनेर थाना क्षेत्र का है, जिसमें परिवादी की सुनवाई किए बिना ही एकतरफा कार्रवाई की गई।
कई अधिकारियों का तर्क, पुलिस पर पहले से प्रेशर…
स्टिंग ऑपरेशन नहीं करने की बात पर पुलिस के अधिकारियों के तर्क भी अजब-गजब है। वे कहते हैं कि पुलिस पर पहले से प्रेशर है। ऐसे में स्टिंग कर पुलिस कर्मचारियों पर और अधिक प्रेशर बढ़ेगा जो सही नहीं है। थानों में कई पुलिस कार्मिक तनाव के चलते कई बार लापरवाही कर लेते है इसका मतलब यह नहीं कि सभी भ्रष्ट है। थानों में अब पहले से कहीं अधिक सद्व्यवहार किया जाता है।
थानों में पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए पुलिसकर्मी मेहनत करते हैं। पुलिस अपने सुख-दुख की परवाह नहीं कर आमजन की सेवा में लगी रहती है लेकिन कई बार थानों में परिवादियों के साथ थाने में दुव्र्यवहार किया जाता है। परिवादियों को अपनी पीड़ा उच्चाधिकारियों के समक्ष उपस्थित होकर बतानी पड़ती है। इन्हीं सभी समस्याओं के मद्देनजर ही पुलिस मुख्यालय ने प्रदेश के पुलिस अधीक्षकों को स्टिंग ऑपरेशन करने के निर्देश दिए थे। अब पुलिस अधीक्षक भी स्टिंग नहीं कर रहे हैं। स्टिंग करेंगे तो पुलिस कर्मचारियों में भय रहेगा। भय रहेगा तो वह किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं करेंगे।
ओमप्रकाश जोशी, सेवानिवृत आरपीएस एवं वरिष्ठ अधिवक्ता
एसपी ऑफिस के आगे पहुंचे फरियादी
थानों में सुनवाई नहीं होने एवं कर्मचारियों के व्यवहार से परेशान होकर कई वास्तविक पीडि़त पुलिस अधीक्षक कार्यालय अपनी पीड़ा लेकर पहुंचते हैं। पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने हर दिन पीडि़तों की भीड़ जमा रहती है। कई परिवादी ऐसे होते हैं जो थाने में शिकायत करते हैं लेकिन सुनवाई नहीं होने पर वे एसपी के समक्ष परिवाद देते हैं। कई ऐसे भी होते हैं जो मामले में पुलिस पर आरोपियों का पक्ष लेने के आरोप लगते हैं।
वर्ष २०१९ में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग के निर्देश पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सर्तकता) गोविंद गुप्ता ने प्रदेश के सभी पुलिस अधीक्षकों को स्टिंग ऑपरेशन करने के आदेश दिए थे। सभी रेंज महानिरीक्षक, पुलिस आयुक्त, जिला पुलिस अधीक्षक व उपाधीक्षक अपने-अपने क्षेत्राधिकार में महीने में एकबार डिकॉय ऑपरेशन करें। साथ ही थानों में एफआईआर दर्ज नहीं करने और नाकाबंदी व गश्ती दल की ओर से अवैध वसूली आदि सूचनाओं का सत्यापन करने के निर्देश दिए थे।
स्टिंग ऑपरेशन के निर्देश है। एसपी के अलावा डीजीपी साब भी अपनी टीम से करवा सकते हैं। यह स्टिंग कभी भी कर सकते हैं लेकिन वर्तमान में इस कार्ययोजना पर काम नहीं हो रहा है। जरूरत होने एवं शिकायत मिलने पर जरूर स्टिंग करेंगे।
प्रीतिचन्द्रा, पुलिस अधीक्षक