बीकानेर,राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार खोज रहे विपक्षी दलों की तलाश आखिर पूरी हो गई है. विपक्षी दलों ने सर्वसम्मति के साथ टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. हालांकि विपक्ष को इस बार राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार खोजने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ी और लंबी बैठकों का दौर भी चला.
विपक्ष को मुश्किल से मिला उम्मीदवार
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर विपक्षी दलों की पहली बैठक 15 जून को हुई. इस बैठक में मौजूद सभी 16 विपक्षी दलों ने NCP सुप्रीमो शरद पवार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के लिए प्रस्ताव रखा. लेकिन शरद पवार ने अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर चुनाव लड़ने से मना कर दिया. कहा तो ये भी जा रहा है कि पवार एक मझे हुए राजनेता हैं और वो जानते हैं कि इस चुनाव में जीत संभव नहीं है, इसीलिए उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया.
इसके बाद उसी बैठक में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के परपोते गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा. लेकिन दोनों ने विपक्ष का उम्मीदवार बनने से साफ इनकार कर दिया.
तीन नेताओं ने क्यों किया इनकार?
आखिर क्यों इन तीनों ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने से मना किया? सूत्रों की माने तो विपक्षी दलों को पता है कि इस चुनाव में उनकी जीत असंभव है क्योंकि राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कुल वोट का 50% वोट चाहिए. विपक्ष के एक नेता के मुताबिक उनके पास 18 दलों का समर्थन हासिल है और इन सभी को मिला लिया जाए तो कुल वोट 43% होता है जबकि सरकार के पास 49% वोट हैं.
BJD और YSR कांग्रेस के पास करीब 8% वोट है, लेकिन इन दोनों दलों का वोट सरकार के पक्ष में जाने की ज्यादा उम्मीद है. यानी सरकार के पास कुल 57% वोट है और विपक्ष के पास कुल 43% वोट, ऐसे में चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार की हार तय है.लेकिन वह सरकार के उम्मीदवार को वॉकओवर नहीं देना चाहते हैं. विपक्ष सरकार को विपक्षी एकता और ताकत का एहसास कराना चाहता है. यही वजह है कि विपक्ष ने राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार उतार दिया है.