बीकानेर,बीते पांच सालों में स्वास्थ्य सेवाओं में आमूल-चूल बदलाव हो गया है। खासतौर पर कोविड काल को देखते हुए पिछले सालभर में आए बदलाव चौंकाने वाले हैं। मसलन, हॉस्पिटलों के आउटडोर में रोगियों की संख्या कम हो गई लेकिन भर्ती होने वालों की तादाद में नौ प्रतिशत तक का इजाफा हो गया। मतलब यह कि गंभीर हालत होने पर ही लोग हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं मरीजों की संख्या कमोबेश बीते सालों जितनी ही होने के बावजूद उन्हें दी जाने वाली दवाइयों की लागत में 45 प्रतिशत तक का इजाफा हो गया। इसमें दवाइयों की कीमतों में बढ़ोतरी से लेकर मर्ज की गंभीरता तक कई पहलु जिम्मेदार माने जा रहे हैं।
सबसे अच्छी बात यह हुई की गांव से लेकर शहर तक सरकारी हॉस्पिटलों में डॉक्टर्स की संख्या बढ़ गई। नतीजतन हर मरीज को डॉक्टर का औसतन 4.45 मिनट समय मिलने लगा जो पांच साल पहले 3.45 मिनट था। खासतौर पर ज्यादा भीड़भाड़ वाले हॉस्पिटल्स की स्वास्थ्य सेवाएं सुधरी हैं। इसके बावजूद अब भी आठ प्रतिशत से ज्यादा हॉस्पिटल ऐसे हैं जहां एक मरीज को डॉक्टर का ढाई मिनट से कम समय मिल रहा। कई जगह डॉक्टर प्रति पेशेंट एक से डेढ़ मिनट ही दे पाता है। ऐसे में इन हॉस्पिटल में डॉक्टर्स की संख्या बढ़ाने की जरूरत भी महसूस हो रही है।
बीते सालभर यानी जनवरी से दिसंबर 2021 की ही बात करें तो बीकानेर के 94 सरकारी हॉस्पिटलों में 3307016 मरीजों को उपचार दिया गया। इनमें से 9060 को भर्ती करना पड़ा। इन मरीजों को 16 करोड़ 61 लाख 89 हजार 460 रुपए की दवाइयां दी गईं। मतलब यह कि एक रोगी को औसतन 50.25 रुपए की फ्री दवाई हॉस्पिटल से मिली। बीते साल यानी वर्ष 2020 में प्रति रोगी दवाई का खर्च 44.66 रुपए था। मतलब यह कि एक साल में ही रोगियों पर दवाई का खर्च लगभग 13 प्रतिशत बढ़ गया। इसे वर्ष 2016 से तुलनात्मक देखें तो प्रति व्यक्ति दवाई की लागत 27.75 रुपए से 50.44 रुपए तक बढ़ गई।
रोगी को डॉक्टर का 1 मिनट ज्यादा मिलने लगा
1 डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल : 24 डॉक्टर्स ने 290908 मरीजों का एक साल में उपचार किया, 797 रोगी हर दिन औसत, 15922056 रुपए की दवाइयां यानी प्रति रोगी 54.73 रुपए खर्च। हैरानी-वर्ष 2020 में प्रति रोगी 123.32 रुपए खर्च हुए थे यहां।
1 सैटेलाइट हॉस्पिटल : गंगाशहर सेटेलाइट हॉस्पिटल मे 3 डॉक्टर ने 143537 रोगियों का उपचार किया यानी प्रतिदिन 393 रोगी। इन पर 6842900 रुपए का दवा खर्च यानी प्रति रोगी खर्च 47.67 रुपए रहा।
18 सीएचसी : 1367870 मरीजों को 67526706 रुपए की दवाइयां दी गई। यानी प्रति रोगी दवाई खर्च 49.37 रुपए बैठता है।
57 पीएचसी : 900297 रोगियों का 57 डॉक्टर्स ने इलाज किया। इन पर 50283143 रुपए दवाई खर्च हुआ। यानी प्रति रोगी खर्च 55.85 रुपए।
17 शहरी डिस्पेंसरी : इन अर्बन पीएचसी पर इनडोर यानी भर्ती सुविधा नहीं। यहां 604404 मरीजों का इलाज 32 डॉक्टर्स ने किया। प्रति रोगी दवाई का खर्च 42.38 रुपए रहा।
प्रति व्यक्ति दवाई की लागत में जो फर्क आया है उसके कई कारण है। हालांकि कोविड में इनडोर बढ़ा और नई, महंगी दवाइयां आईं। सरकार अब पीएचसी स्तर पर भी क्रॉनिक डिजीज की दवाइयां उपलब्ध करवा रही हैं। मसलन, हार्ट, बीपी, शुगर, अस्थमा आदि। इसके अलावा स्नेक बाइट, डॉग बाइट जैसी दवाइयां हर जगह उपलब्ध करवाने का प्रयास है। जाहिर है कि दवाई जब घर के नजदीक ही मिलेगी तो मरीज को इसका फायदा होगा। – डॉ.नवल गुप्ता, निशुल्क दवा योजना के नोडल प्रभारी
एक रोगी को औसतन 50.25 रुपए की फ्री दवाई मिली 2021 में
9904 रोगी हर दिन औसतन हॉस्पिटल पहुंचते थे वर्ष 2016 में
9026 रोगी हर दिन औसतन हॉस्पिटल पहुंचे 2021 में
0.08 प्रतिशत रोगी प्रतिदिन औसत कम हुए100321345 रुपए की फ्री दवाइयां दी गई 2016 में
166189460 रुपए की फ्री दवाइयां दी गई 2021 में
40 प्रतिशत बढ़ गई दवाइयों की लागत पांच सालों में
गंभीर संकेत: आउटडोर रोगियों की संख्या कम हुई, भर्ती होने वालों की बढ़ी। यानी गंभीर स्थिति होने पर ही हॉस्पिटल पहुंच रहे लोग