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बीकानेर,भारतीय सेना के महत्त्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के मकसद से सरकार पहले ही कई सराहनीय कदम उठा चुकी है। इसके चलते महिला सैनिकों को खासकर युद्धक विमान उड़ाने का अवसर मिला और अब वे ऐसा कर पा रही हैं। इसी क्रम में बत्तीस सेवानिवृत्त अल्पावधि सेवा यानी शार्ट सर्विस कमीशन के तहत चयनित महिला अधिकारियों को पेंशन देने की सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिश से निस्संदेह उनका मनोबल बढ़ा है। सेना में दो तरह के अधिकारियों की भर्ती होती है।

एक तो वे होते हैं, जो सेवानिवृत्ति की आयु तक सेवाएं देते हैं, दूसरे वे होते हैं, जो स्वेच्छा से अल्पावधि के लिए सेना में सेवा देने के लिए जाते हैं।अल्पावधि के लिए चयन और प्रशिक्षण आदि की प्रक्रिया लगभग वही होती है, जो स्थायी सेवाओं के लिए चुने जाने वाले अधिकारियों की होती है। मगर उनके वेतन और भत्तों से संबंधित नियम अलग होते हैं।

हालांकि अल्पावधि के अधिकारियों को स्थायी सेवाओं में बहाली का भी प्रावधान होता है, पर इसका निर्धारण संबंधित प्राधिकार करता है। अल्पावधि सेवाओं से निवृत्त हुए अधिकारियों के लिए दूसरे सरकारी महकमों की नौकरियों में कुछ आरक्षण होता है, पर जो सेना से मुक्त होने के बाद कहीं और चयनित नहीं हो पाते या जाना ही नहीं चाहते, उनके सामने नियमित आय की समस्या पैदा हो जाती है।

खासकर महिला सेनाधिकारियों के सामने यह समस्या अधिक जटिल हो जाती है, जब वे सेवामुक्त होकर कहीं और काम नहीं करतीं या कर पातीं। ऐसे में सेना से पेंशन उनके लिए बड़ा सहारा हो सकती है। इसी संबंध में अल्पावधि सेवा की बत्तीस महिला अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने पेंशन और स्थायी सेवा में बहाली के लिए गुहार लगाई थी।हालांकि अदालत ने उनकी बहाली का आदेश तो नहीं दिया, पर सेना के अधिकारियों और सरकार से सिफारिश अवश्य की है कि उनकी योग्यता को ध्यान में रखते हुए पेंशन बहाल की जाए। जिस मानवीय कोण से अदालत ने सिफारिश की और वायुसेना की तारीफ की, उससे उम्मीद बनी है कि इन महिला अधिकारियों के पक्ष में सकारात्मक रुख अपनाया जाएगा। दरअसल, सेना के मामले में नागरिक अदालतें कोई फैसला देने से बचती हैं। इसलिए कि सेना की अपनी अदालत ही सैनिकों और अधिकारियों से संबंधित मामलों की सुनवाई करती है। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में प्राप्त अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए इस मामले की सुनवाई की।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस समय भारतीय सेना को योग्य अधिकारियों की बहुत जरूरत है, मगर इस आधार पर नियम के अनुसार निवृत्त हुए अधिकारियों को सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता। फिर भी अगर किसी अधिकारी में जज्बा है, वह योग्य भी है और अल्पावधि से स्थायी सेवा में जाना चाहता है, तो उसके प्रति कुछ लचीला रुख अपनाने में कोई हर्ज नहीं।सर्वोच्च न्यायालय ने इसी बिंदु की तरफ इशारा किया है। फिर महिला अधिकारियों के मामले में मानवीय दृष्टि भी अपनाई जानी चाहिए। खासकर वायु सेना के अधिकारियों को तैयार करने में खासा वक्त और पैसा खर्च होता है। अगर अल्पावधि सेवा के लिए तैयार महिला अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया जाता है, तो इससे दोनों की बचत होगी। अगर सेवा विस्तार संभव नहीं है, तो उनके भरण-पोषण के लिए नियमानुसार पेंशन की बहाली होनी ही चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय का ताजा फैसला ऐसी अल्पावधि की अन्य महिला अधिकारियों के मामले में भी नजीर साबित होगा।

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