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बीकानेर,पुलिस के पास झूठी शिकायत देकर दुश्मनी निकालने वालों की बढ़ती संख्या साल दर साल बढ़ रही है। झूठे मामले पुलिस के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। झूठे मामलों के कारण पुलिस की ऊर्जा बेवजह खर्च हो रही है। साथ ही वास्तविक पीडि़तों को न्याय मिलने में देरी हो रही है, जिससे पुलिस की छवि पर भी धूमिल असर पड़ रहा है। वास्तविक पीडि़तों को न्याय में देरी मिलने से वे उच्चाधिकारियों के पास पहुंचते हैं। पुलिस पर कई तरह के आरोप लगते हैं। साथ ही समाज में आपसी विवाद व एक-दूसरे के प्रति रंजिश बढ़ती है। ऐसे में राज्य सरकार व पुलिस विभाग अब झूठी मामले दर्ज कराने वालों से सख्ती से निबटेगा। अब झूठे मामले दर्ज कराने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बकायदा इसके लिए जिला में झूठे मामले दर्ज कराने के लिएविशेष काम करेंगी जो झूठे मामलों की न्यायालय में पैरवी करेंगी और उन्हें सजा दिलाएगी।

थानों में जिन लोगों ने झूठी शिकायत देकर केस दर्ज कराया था, उनके खिलाफ आइपीसी की धारा 182 के तहत कार्रवाई हो सकती है। जिला पुलिस ने तीन साल में करीब 2002 एफआइआर झूठी पाई गई। इनमें से 152 एफआर के खिलाफ न्यायालय में इस्तागसा दायर किया गया। साल 2019 से 2022 तक 136 एफआर कोर्ट ने स्वीकार की, जिसमें से एक में सजा और दो पर जुर्माना लगाया गया है।
हर साल दर्ज होती है झूठी एफआइआर

पुलिस में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में कुल 5322 मामले दर्ज हुए। जिसमें से 874 मामले झूठे पाए गए। इनमें से 72 मामले के खिलाफ न्यायालय में इस्तगासे दायर किए गए।
– साल 2020 की बात करें तो 4350 से मामले दर्ज हुए, जिनमें से 443 मामले झूठे साबित हुए। इनमें से 31 मामलों के संबंध में न्यायालय में इस्तगासे पेश किए गए।
-वर्ष 2021 में 4644 मामले दर्ज हुए, जिसमें से 685 झूठे पाए गए और 49 के खिलाफ न्यायालय में इस्तगासे दायर किए गए हैं।
वजह

झूठे मामलों को रद करने के पहले हर पहलू की गंभीरता से जांच की जाती है उसके बाद गवाह, सबूतों और तथ्यों के आधार पर उन्हें झूठा घोषित कर रद कर दिया जाता है।

नियम हैं कि कोर्ट में सीधे तौर पर इस धारा 182 के तहत पुलिस को खुद ही शिकायतकर्ता बनकर पैरवी करनी पड़ती है। बार बार कोर्ट का चक्कर काटना पड़ता है। पुलिस के अधिकारियों का मानना है कि ऐसे मामलों में पैरवी करने से उनकी परेशानी बढ़ जाती है। पहले से ही दर्ज एफआइआर में जांच आदि का काम सही समय पर पूरा करने में दिक्कत होती है। ऐसे में एफआर वाले मामलों की भी पैरवी शुरू कर दे तो पुलिस के समय का नुकसान होगा। यही सबसे बड़ी वजह होती है कि झूठे मामलों को बंद कर उनके खिलाफ पुलिस की ओर से कोई मामला दर्ज नहीं किया जाता है।

भारतीय दंड सहिता की धारा 182 के तहत झूठी सूचना या जानकारी देने पर सजा का प्रावधान है। मामले की जांच में साबित हो जाता है कि शिकायतकर्ता द्वारा झूठी शिकायत दी गई तो धारा 182 के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई होती है। इसमें छह महीने की सजा और जुर्माना भी है। जबकि धारा 211 के तहत कोर्ट में झूठी गवाही या गुमराह करने पर उसके खिलाफ कोर्ट के आदेश पर कार्रवाई होती है। जिसकी सजा सात साल से अधिक है।
अजय पुरोहित, वरिष्ठ अधिलक्ता एवं पूर्व अध्यक्ष जिला बार एसोसिएशन बीकानेर

झूठा प्रकरण दर्ज कराने अथवा झूठा साक्ष्य गढ़ने दोनों की कानूनन अपराध है। धारा 182 और 211 के तहत दंडनीय है। संबंधित थानाधिकारी न्यायालय में मिथ्या साक्ष्य वालों के खिलाफ इस्तगासे दायर कर सजा दिलाने का काम करते हैं। इसके लिए बीकानेर में एएसपी ग्रामीण को नोडल अधिकारी बनाया गया है।
योगेश यादव, पुलिस अधीक्षक

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