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बीकानेर सोनलिये धोरों से शहर की चकाचौंध तक गूंजने वाली बीन की धुन अब धीमी पड़ने लगी है। सरपट दौड़ते सांप को पकड़ने और बीन की धुन पर नाचते सांपों की फुफकार भी अब यदा-कदा ही सुनाई दे रही है।

शताब्दियों से पीढ़ी दर पीढ़ी सांप पकड़ने के साथ अपने घर परिवार के भरण पोषण के लिए सांप के लोग दर्शन करवाकर नृत्य करवाने वाले कालबेलिया (सपेरा) समाज के लोग अब धीरे-धीरे पीढ़ियों से चले आ रहे इस परम्परागत काम से दूर हो रहे हैं।

सख्ती व कानूनी कार्रवाई से खिन्न

खेल दिखाकर रोजी-रोटी कमाने वाले कालबेलिया समाज के लोग सांप पकड़ने को लेकर सरकार की सख्ती और होने वाली कानूनी कार्रवाई से परेशान हैं। करीब 60 साल तक इस पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से जुड़े रहे घड़सीसर निवासी गोरखनाथ ने अपनी बीन अब खूंटी पर टांग दी है। न वे सांप पकड़ते हैं और ना ही यह खेल दिखाते हैं।

कोई कर रहा मजदूरी, कई खेतों में कर रहे काम

घड़सीसर क्षेत्र स्थित बस्ती में रहने वाले कालबेलिया समाज के लोग सांप पकड़ने व खेल दिखाने की बजाय मेहनत मजदूरी कर रहे हैं। समाज के अमरनाथ बताते है कि सांप पकडने व खेल दिखाने से होने वाली आय से अब परिवार चलाना संभव नहीं हो पा रहा है। मजबूरी में समाज के लोग दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। कई लोग खेतों में मजदूरी कर रहे है। महिलाएं भी सपेरा नृत्य में अधिक रुचि नहीं दिखा रही हैं।

सरकार की अनुमति से परम्परा आगे बढ़े

बच्छासर कालबेलिया बस्ती निवासी शंभूनाथ का कहना है कि युवा अब मेहनत मजदूरी कर रहे हैं। सांप पकड़ने और खेल दिखाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। सरकार पीढ़ी दर पीढ़ी इस परम्परा से जुड़े लोगों को अनुमति प्रदान करें। इससे कालबेलिया समाज के लोग अपने परिवारों का भरण पोषण कर सके।

युवाओं को इसमें स्थायित्व मिले

घड़सीसर बस्ती निवासी युवा अमरनाथ का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने किसी प्रकार तमाम मुश्किलों को झेलते हुए अपने • जीवन का निर्वहन कर लिया। हम मेहनत मजदूरी कर अपने परिवारों का संचालन कर रहे हैं। अपने बच्चों को पढ़ाएंगे व स्थायित्व जीवन जीएंगे। सांप का खेल दिखाने से परिवार का भरण पोषण नहीं हो सकता। न सरकार सहयोग कर रही है और ना ही प्रशासन।

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