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बीकानेर,राजस्थान में गहलोत सरकार के तीन साल पूरे हो गए हैं। सरकार के कार्यकाल का चौथा वर्ष शुरू हो गया है। गहलोत सरकार आयोजन करके सी तीन साल की उपलब्धियों को जनता के सामने रख रही है। घोषणा पत्र की 70 फीसदी काम पूरे होने का दावा है। सच में देखा जाए तो सरकार धरातल पर अब तक कुछ ज्यादा नहीं कर पाईं है। इसमें सरकार का ज्यादा दोष भी नहीं है। सरकार का ज्यादा समय तो सत्ता संकट में ही बीता। सरकार गठन के बाद से ही सचिन गुट की दखल अंदाजी से सत्ता में दरार आने लगी। प्रशासन के अंदर भी दरार पड़ गई थी। बीते तीन वर्षों का समय तो सरकार में आए संकट से निपटने में ही लग गया। इसमें कोरोना का महामांरी की विडंबना भी शामिल है। वास्तव में गहलोत सरकार के तीन साल चुनौतीपूर्ण रहे। इस चुनौती से निकल पाना ही सरकार की उपलब्धि रही। बाकी उपलब्धियों के दावे बेमानी है। यह भी सच है कि केंद्र राज्यों को समय पर जीएसटी समेत विभिन्न करों का और सरकारी योजनाओं का पैसा नहीं दे पाईं। यह गहलोत सरकार के लिए कोढ़ में खाज जैसा रहा। सरकार पूरे तीन साल वित्तीय संकट में रही। कार्मिकों के वेतन का भुगतान भी कठिन हो गया। विभागों के नियमित खर्चों पर भी रोक लगा दी गई थी। ऐसे में विकास की मद में सरकार के पास फूटी कोड़ी नहीं थी। इस सच को आंकड़ों से भी झुठलाया नहीं जा सकता। धरातल पर किसी सेक्टर में कुछ किया हुआ दिखे तब आंकड़े भी तस्दीक करते हैं अन्यथा आंकड़े झूठे होते हैं। कोरोना काल में आम लोगों की आजीविका संकट में रही। कोरोना के चलते जन जीवन ठप्प हो गया। सरकार तो ठप्प होनी ही थी। उद्योग धंधे, व्यापार, काम काज और रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। सरकार वित्तीय संकट में आ गई। करने धरने को कुछ भी नहीं बचा। कोई विकास परियोजना, आधारभूत विकास के कार्य नहीं हुआ है। घोषणाएं जरूर हुई है। जिनको पूरा करने का संसाधन नहीं दिया गया है। सरकार की मंशा प्रदेश में विकास को गति देने की रही है। जन कल्याण की योजना और आम जनता को राहत की भी है। तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में मंत्री मंडल और मंत्री परिषद की बैठक में किए निर्णयों में सरकार की जन कल्याण के काम करने की संकल्प शक्ति झलकती है। सरकार विकास और रोजगार की किसी बड़ी परियोजना की तो बात नहीं कर रही है। संविदा कर्मियों को नियमित करने, शिक्षा विभाग में तबादला नीति, किसानों_बेरोजगारों लेकर पॉलिसी ,शिक्षा, खनिज, डिजिटल मीडिया आदि पॉलिसी की बात सोच रही है। सामाजिक जवाबदेही कानून, मुफ्त पशु धन बीमा, मेला विकास प्राधिकरण, सार्वजनिक परिवहन नीति, खाद्य प्रसंस्करण पार्कों की स्थापना, राईट टू हेल्थ जैसे मुद्दों पर सरकार जनहित में सोच रही है। सरकार की उपलब्धियों का वास्तविक रिकार्ड अगले डेढ़ वर्ष में पता चलेगा। अभी के 3 साल तो कागजी दावें ही हैं।

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