जयपुर,गणिनी आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी की शिष्या गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी का गुरुवार को मध्यरात्रि में देवलोक गमन हो जाने के पश्चात शुक्रवार को प्रातः 10 बजे चूलगिरी स्थित राणाजी की नसियां में गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी के शरीर को जैन परंपराओं के अनुसार अंतिम क्रिया विधि सम्पन्न कर पंचतत्व में विलीन कर दिया गया था। शनिवार को प्रातः 6.15 बजे पंडित धर्मचंद शास्त्री (गुरुग्राम) के निर्देशन में ब्रह्मचारिणी किरण दीदी, मुन्नी बाई, विमला बाई, माताजी के घरस्थ अवस्था के परिवार सदस्य शरद जैन और अमित जैन (जबलपुर) सहित समाज सेवी राकेश सेठी (कलकत्ता), अशोक चूड़ीवाल (गुहावटी), अधिवक्ता हेमंत सौगानी, अनिल जैन धुंवा वाले, राजेन्द्र बड़जात्या, प्रवीण बड़जात्या, अजित पाटनी, कैलाश वैद, सर्वेश जैन, आशीष गोधा, मनोज पहाड़िया, धरणेन्द्र सेठी, प्रदीप चाँदवाड़ आदि की उपस्थिति जैन परंपराओं के अनुसार समाधि के बाद कि क्रिया विधि सम्पन्न कर फूलों को चुगा गया और कलश में एकत्रित कर समाधि स्थल पर शिला का निर्माण कर चरण छत्री की जयकारों के साथ नींव रखी गई।
अखिल भारतीय दिगम्बर जैन युवा एकता संघ अध्यक्ष अभिषेक जैन बिट्टू ने जानकारी देते हुए बताया कि शनिवार को प्रातः 6.15 बजे चूलगिरी में समाधि के बाद कि क्रिया विधि सम्पन्न होने के पश्चात प्रातः 8 बजे सभी श्रद्धालु भट्टराक जी की नसियां में एकत्रित हुए। इस दौरान श्रद्धालुओ ने विनयांजलि स्वरूप गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान अकेले जयपुर से ही नही बल्कि देशभर से श्रावक और श्राविकाएं शामिल हुए। रविवार को श्याम नगर स्थित गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी के चातुर्मास स्थल आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में सायं 7 बजे से विनयांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा। साथ झोटवाड़ा स्थित मानसरोवर कॉलोनी के दिगम्बर जैन मंदिर में भी विनयांजलि सभा रखी गई है।
*पर्याय रूप से कुछ भी शाश्वत नहीं है – आचार्य सुनील सागर*
भागदौड़ की इस जिंदगी में भी श्रावक सुबह-सुबह भोर होते ही चातुर्मास स्थल भट्टारकजी की नसिया पहुंच जाते हैं। प्रातः बेला में भगवान जिनेंद्र ऋषभदेव स्वामी का जलाभिषेक हुआ, पश्चात गुरुदेव की मधुर वाणी से शांति मंत्रों का उच्चारण हुआ, जगत में सभी जीवो के प्रति शांति की कामना की गई ,पूरा जिनालय जय घोष से गुंजायमान हो गया।
उक्त जानकारी देते हुए चातुर्मास व्यवस्था समिति के प्रचार मंत्री रमेश गंगवाल ने बताया कि पूर्व आचार्य भगवन्तो के चित्र का अनावरण समाजश्रेष्ठीयों ने संयुक्त रूप से किया, दीप प्रज्वलन के पश्चात अर्घ्य अर्पण करते हुए पूर्व न्यायाधीश नरेश कुमार सेठी, अधिवक्ता हेमंत सोगाणी, कमल बाबू जैन, रूपेंद्र छाबड़ा, ओमप्रकाश काला सभी ने गुरुदेव के पाद प्रक्षालन किए और आचार्यश्री को जिनवाणी शास्त्र भेंट किया। गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी कि उत्तम समाधि होने के पश्चात सन्मति सुधीर सभा मंडप में विनयांजलि सभा का गुणगान हुआ। सभा को चातुर्मास व्यवस्था समिति के मुख्य संयोजक रुपेंद्र छाबड़ा ने पूज्य माताजी को विनयान्जलि प्रस्तुत की। इसके पश्चात राकेश सेठी कोलकाता, जनकपुरी अध्यक्ष पदम बिलाला ने पूज्य गुरु माता को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा पूज्य माता जी से हम कई वर्षों से जुड़े हुए थे जनकपुरी जब वें पधारी थी तब जिनालय में अनेक कार्य उनके सानिध्य में हुए थे। पंडित धर्मचन्द शास्त्री अष्टापद तीर्थ के अधिष्ठाता ने पूज्य गुरुमां के अनेक संस्मरण सुनाते हुए बताया पूज्य गुरु माता के शुभ आशीर्वाद से जो मूर्ति बनने में समय वास्तविक रूप से लगता वह मात्र 17 दिन में ही पूर्ण हो गया उनके गुणानुवाद करने हेतु बहुत से संस्मरण हैं पूज्य माताजी के पास कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या लेकर आता तो गुरु मां सहज भाव से समाधान करती थी। किरण दीदी ने विनय सुमन अर्पित करते हुए कहा गुरु का हाथ अगर सिर पर हो तो मन को अत्यधिक संतुष्टि मिलती है पूज्य गुरु माता का मुझ पर पूर्ण आशीर्वाद था। कमलबाबू जैन ने पूज्य गुरु माता के सम्मेद शिखरजी में निर्माण के संस्मरण सुनाते हुए कहा सन 2007 से जयपुर के इतिहास के पन्ने माताजी से जुड़े हुए हैं श्याम नगर महिला मंडल की सभी सदस्याओं ने महिला अभिषेक के विषय में संस्मरण बताते हुए विनयान्जली अर्पण की। भागचंद चूड़ीवाल ने पूज्य गुरु मां को भावांजलि प्रस्तुत करते हुए आचार्य जी से निवेदन किया कि गुरुदेव संघ सहित बड़ के बालाजी गांव अवश्य पधारने की कृपा करें। नरेश कुमार सेठी ने गुरु मां को विनयान्जली अर्पित की।
राजेन्द्र बड़जात्या ने जानकारी दी पूज्य गुरुदेव ने अपने मंगलमय उद्बोधन में कहा ” पर्याय रूप से कुछ भी शाश्वत नहीं है पर्याय बदलती है, देह बदलती है, परंतु धन्य है वह जीव जो देह परिवर्तन के समय पर अपने को शांत चित्त रखते हैं। गुरुदेव ने कहा गौरवमती माताजी जयपुर में 15 चातुर्मास कर चुकी थी सभी देव शास्त्र गुरु की श्रद्धा में साधक बने। क्षपक की अवस्था के बारे में समझाते हुए, कहा सांस तेज हो गई हो, आंखें बार-बार खुल कर बंद हो रही हो, तब जोर से नहीं बोलना चाहिए क्योंकि उस समय जो वेदना होती है और वेदना की तरफ उस समय ध्यान नहीं जाना चाहिए ।उत्तम समाधि मरण होता है।