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बीकानेर,मानव धर्म प्रचार सेवा संस्थान ओर माता धापुदेवी आसदेव परिवार बंबलु वालों की और से शारदीय नवरात्र के पावन पर्व पर नवरात्र पुजा अनुष्ठान शुभारंभ हुआ… उपरोक्त नव दिवसीय “नवरात्र हवन यज्ञ अनुष्ठान” सदग्रहस्थ संत मनुजी महाराज एवं बालसंत श्रीछैल विहारी महाराज के द्वारा पारीक चोक सुथार मोहल्ला नयाशहर स्थित भागवतबासा भवन प्रांगण मे आज विधि-विधान पूर्वक पूजन कर सोङषोपचार पंचोपचार पुजन के साथ घटस्थापन किया गया..और गायत्री जप एवं हवन-पूजन एवं साय दुर्गासप्तसती पाठ इन्द्राक्षी कवच स्रोत पाठ किये गये..बालसंत श्रीछैल विहारी महाराज ने मां शैलपुत्री की जीवनी की पावन व्याख्या कर बताया कि “वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌” नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है… इन रूपों के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है..बालसंत ने बताया कि

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है….हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री…. इनका वाहन वृषभ है…इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं..इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है… और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है…यही देवी प्रथम दुर्गा हैं… ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं…उनकी एक कहानी है..कि एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया… तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया..भगवान शंकर को निमंत्रित नहीं किया। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं..तो शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है.. लेकिन उन्हें नहीं..ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है….सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी…सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे।भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है।दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा..वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया…इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं…पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ।शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। अनुष्ठान से जुङे नितेश आसदेव ने बताया..कि उपरोक अनुष्ठान मे बीकानेर बंबलु निवासी माता धापुदेवी के पुत्र और हाल मुम्बई के प्रसिद्ध भामाशाह कॉन्ट्रेक्टर रामप्रताप कुंदनराम आसदेव लक्ष्मण आसदेव नवरत्न आसदेव मनोज आसदेव पुनम आसदेव दिनेश आसदेव गोरांश आसदेव एव समस्त बंबलु आसदेव परिवार नवदिवसीय नवरात्र अनुष्ठान के मुख्य यजमान है…..संस्थान की और से नित्य पुजन सेवाश्रम से मदनमोहन मल्ल प्रथ्वीसिंह पंवार नारायण सोनी नवरत्न धामु हरिकिशन नागल श्रीकिसन मांङण कुनाल पारीक श्याम नारायण उदीतनारायण पारीक आदि जुङे हे.. नित्य कंजक पुजा व्यवस्था हेतु सीमा पुरोहित ममता आसदेव नितेश आसदेव को अनुष्ठान प्रभारी बनाया गया है..

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