












बीकानेर,प्रथम पुण्यतिथि चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी का जन्म 1 जनवरी 1935 को हुआ, उनका बचपन बहुत ही कष्टदायक रहा पिता चौधरी देवीलाल जी देश की आजादी के लिए जेल में थे पूरे परिवार की जिम्मेवारी उनकी माता हरखी देवी पर थी, कुदरत की पहली मार उनके शरीर पर पड़ी, जो उन्हें उम्रभर भुगतनी पड़ी, हालांकि उनकी माताजी बीकानेर में लंबे समय तक मोहता धर्मशाला में रहकर स्थानीय पीबीएम अस्पताल में उपचार करवाती रही लेकिन वह पूर्ण रूप से शारीरिक स्वस्थ नहीं हो पाए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा आर्य समाजी संत केशवानंद जी के गुरुकुल संगरिया में हुई। वेद और गीता उनके पसंदीदा ग्रंथ थे। कबड्डी और वॉलीबॉल खेल के भी शौकीन थे। वह हमेशा उबला हुआ पानी और चवनप्राश के साथ अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते थे। बीमार होने पर आयुर्वेद की दावाऔ का उपयोग करते थे, सादा राजस्थानी भोजन पसंद करते थे। कैर सांगरी, गवार फली कड़ी, लोहिया,टीडंसी व काचर, मोठ बाजरी की राबड़ी तथा फल में वह कीवि पसंद करते थे, शाम के खाने में वेज सूप तथा मीठे में वे खजूर को पसंद करते थे। सुबह जल्दी उठना वह देर रात तक अपने सभी मित्रों से फोन पर हाल-चाल पूछना वह कभी नहीं भुलतै थे। वे विधानसभा व सांसद के के रूप में उन्होंने जनहित के मुद्दे उठाकर हमेशा उनकी सेवा की वे गैर कांग्रेस व गैर भाजपा की विकल्प के रूप में तीसरे मोर्चे के समर्थक रहे। 1977 व 1989 में गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा अभी हरियाणा प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रहे, “सरकार आपके द्वारा”कार्यक्रम में भी हरियाणा की सभी ग्राम पंचायत में दरबार लगाकर उनकी समस्याओं का निराकरण करते थे। वे कुशल संगठनकर्ता, सख्त प्रशासक व दृढ़ निश्चय कर्ता थे। उन्होंने अपने शासनकाल में 5 लाख से भी अधिक युवाओं को सरकारी नौकरियां दी जिसकी उन्हें सजा भी भगत नहीं पड़ी, उनके जीवन का ज्यादातर समय जेल में काटा देश की आजादी व आपातकाल में भी जेल में रहे, वे किसानौ, शिक्षकों व पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए भी जेल में रहे। बीकानेर और मेरे परिवार से उनका आत्मीय संबंध रहा बीकानेर में जब भी आते तो मेरे पास खाना खाते थे, जब भी बीकानेर के हितों के लिए मैं उनके पास जाता तो उन्होंने मुझे कभी निराश नहीं किया अकाल के समय पशुधन के बचाने के लिए उन्होंने सैकड़ो ट्रक पशु चारा भेजा जसराय जी के बसाए हुए गांव जसरासर में बारौडी भवन का उद्घाटन करने पहुंचे तथा नोखा गांव में चौधरी देवीलाल जी की आदमकद मूर्ति लगवाने का काम किया। उनके साथ बिताए हुए पल जीवन में प्रेरणादाई व यादगार रहेंगे।
