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बीकानेर,महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के प्रो.अनिल कुमार छंगाणी,विभागाध्यक्ष,पर्यावरण विज्ञान विभाग का ये मानना है कि भारतीय ज्ञान परंपराओं में पर्यावरण और जैव विविध संरक्षण हेतु कई तरह के उत्सव और त्योहार मनाए जाते हैं, जो आज के वैज्ञानिक युग में भी सार्थक है। इसी क्रम में सावन माह की शुक्ल पंचमी के दिन नागपंचमी का त्योहार देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है। इसका ओचित्य यह है कि, इसी श्रावण माह में सांप प्रजनन हेतु व भोजन की तलाश में अन्य सरीसृपो के साथ अपने-अपने शीत–प्रवासन से बाहर निकलते हैं। और विदित हो कि पिछले एक सप्ताह में विभिन्न सोशल मीडिया, अखबारों की खबरों से स्पष्ट है, कि इस सीजन में सरीसृप लोगों के सर्वाधिक संपर्क में आते हैं। अतः लोगों के मन में सांपों को लेकर कोई तरह का भय ना हो इसीलिए हमारे बुजुर्गों ने इनकी पूजा अर्चना व नाग पंचमी व गोगा नवमी जैसे त्योहारों का निर्धारण किया। जिनका इन सांपो की रक्षा के लिए तथा लोगों में सांपों के प्रति सहजता व श्रद्धा जागृत करना था। जो आज भी वैज्ञानिक ढंग से सार्थक है । साथ ही नाग पंचमी के दिन सांपों को चोट न लगे इसलिए इस दिन न खेतों में जुताई करें न पेड़ काटे। जिसका सीधा-सीधा असर इनके संरक्षण और संवर्धन से जुड़ा हुआ है। ज्ञातव रहे कि हमारे आसपास पाए जाने वाले सांपों में ज्यादातर नॉन–पाइजनस है, तथा पारिस्थितिकी तंत्र व फूड चेन में बहुत आवश्यक कड़ी है। यह प्राकृतिक रूप से किसानों के मित्र भी हैं। जो हानिकारक चूहों, छोटे जीवों, कीट पतंगो को खाकर किसान की फसलों को नुकसान से बचते हैं। इसलिए अगर इस बारिश की सीजन के दौरान आपके घरों, गोदाम व खेतों वके आसपास अगर कोई सांप आ जाता है, तो उसे बिना नुकसान पहुंचा जाने का रास्ता दे दे । अथवा विशेषज्ञ की मदद से पकड़ कर आसपास के जंगल में छुड़ा दे।

 

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