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बीकानेर,साता वेदनीय कर्म के ग्याहरवें बोल  शास्त्रों का श्रवण करता व्यक्ति शास्त्र ज्ञाता बनता है। शास्त्र ज्ञान का उपदेश है आसक्ति रहित होना। जीवन में दो बातें है। पहली आसक्ति होना और दूसरी अनासक्ति है। संसारियों का जीवन आसक्ति भरा होता है और महापुरुषों, संतो और आचार्यों के जीवन में आसक्ति नहीं अनासक्ति का भाव रहता है। श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह सद्विचार गुरुवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। महाराज साहब ने आसक्ति और अनासक्ति में भेद बताते हुए संसार में रहते हुए भी हमें किस पर आसक्त होना चाहिए और  किस पर नहीं, इस विषय पर व्याख्यान दिया। आचार्य श्री ने फरमाया कि महापुरुषों ने, तत्व दृष्टाओं ने एक ही उपदेश दिया कि आसक्ति का त्याग करो। छोटी-छोटी आसक्ति हर व्यक्ति के मन में होती है। यह मेरा पन ही आसक्ति की बात को दर्शाता है और यही  आसक्ति का द्योतक है। आचार्य श्री ने कहा कि संयमी और संसारी तो पर्याय हैं। हम जिस पर्याय में रहें हमें आसक्त होकर रहना चाहिए। आसक्ति जीवन को सार्थक नहीं बनाती, आनन्द नहीं देती है। हमें अपने जीवन में अनासक्ति को लाने का प्रयास करना चाहिए। यह जीवन में नहीं है तो इसका आह्वान करें, निमंत्रण दें, जीवन में जितनी अनासक्ति बढ़ती है, जीवन आनन्दमय बनता है। आसक्ति व्यक्ति को संकीर्ण करती है। आसक्त व्यक्ति यह कभी नहीं कहता कि यह संसार मेरा है, वह यही कहता है कि यह परिवार मेरा है। आसक्ति में जीने वाला केवल अपना सुख चाहेगा, परिवार का सुख चाहेगा लेकिन जो आसक्त होते हैं, वह संसार का सुख चाहते हैं।

संतों की वाणी सुनो, शास्त्रों का वाचन करो
आचार्य श्री ने कहा कि दृष्टि से सृष्टि और सोच से संसार बदल जाता है। शास्त्रों में रमण कब होगा…?, जब हम संतों की वाणी सुनेंगें, शास्त्रों का वाचन करेंगें। यही शास्त्रकारों का उपदेश है, निर्देश है, आदेश है और संदेश है। आप अनासक्त रहो, अपनी आसक्ति को, मुच्र्छाओं को कम करते जाओ। आसक्त व्यक्ति परिवार का भला चाहता है, सुख चाहता है, अच्छा और शुभ चाहता है।  लेकिन अनासक्त व्यक्ति संसार को पूरा परिवार समझता है। वह संसार का भला समझता है, संसार का उत्थान चाहता है, मंगल और कल्याण चाहेगा।
आसक्ति रहित बनाओ जीवन
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि जितने भी महापुरुष, शास्त्रज्ञाता हैं, वह एक ही बात कहते हैं, आप आसक्ति रहित बनो। अपने जीवन में अनासक्ति को स्थान दो। व्यक्ति के जीवन में जैसे ही अनासक्ति आती है, उसके जीवन में उत्सव आ जाता है और जीवन जिनका उत्सव है, मरण उसका महोत्सव बन जाता है।
प्रवचन से धर्म लाभ होता है
आचार्य श्री ने कहा कि लोग धन के चक्कर में धर्म को गंवा देते हैं। बहुत से लोग सत्संग से, प्रवचन से, धर्म-ध्यान से दूर भागते हैं। जब उनसे कहा जाता है कि समय निकालो तो कहते हैं, बापजी अभी तो काम है। आचार्य श्री ने कहा कि बंधुओ, प्रवचन धन लाभ तो नहीं कराता लेकिन धर्म लाभ जरूर करता है। यह कमाये हुए धन को कैसे खर्च करें, यह सीख देता है। यह चातुर्मास भी धर्म कमाने का सीजन है, जैसे आपके लिए दीपावली धन कमाने का सीजन है। यह चातुर्मास पूरा होते ही धर्म का सीजन ऑफ हो जाता है। फिर सत्संग का लाभ कब मिले! मिले भी की नहीं मिले, इसलिए आप धर्म को कमाने पर ध्यान दो। अगर आप धर्म कमा लेते हैं तो यह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि पा लेते हैं।
भजन से दिया जीवन संदेश
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने भजन- हो….हो.. संयम उसको मिले, पुण्य हो जिसके फले, भोगों के रंग में रंगी है दुनिया, विषयों के झूले झुले’ और  ‘आ चंदा वाली चांदनी में क्यूं ललचाये रे, मिठी-मिठी लहरां में क्यूं आन भुलाये रे, दिन बीते पखवाड़ा बीते, बीते महीना साल रे, अंतर खातो खोल देख, कंई लाभ कमायो रे, आ चंदा वाली चांदनी…’ सुनाकर उसके भावार्थ से जीवन जीने और शास्त्रों का श्रवण कर विषय- विषयों से बाहर निकलने की बात कही।
ऋषभ बांठिया ने ली केन्द्रीय संघ की सदस्यता
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि श्री शान्त क्रान्ति की केन्द्रीय संघ की सदस्यता बीकानेर के ऋषभ बांठिया द्वारा लिए जाने के बाद धर्मसभा में इसकी घोषणा मंत्री विनोद सेठिया ने की, इस अवसर पर सभी श्रावक-श्राविकाओं ने हर्ष-हर्ष, जय-जय का उद्घोष कर बहुमान किया।

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