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बीकानेर,श्री गुरु अर्जुन दास जी सत्संग भवन व श्री रुद हनुमान सेवा समिति द्वारा गुरु पूर्णिमा का त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया। शिष्यों द्वारा श्री गुरु अर्जुन दास जी का पूजन किया गया एवं आशीर्वाद प्राप्त किया। सुंदरकांड का पाठ एवं राम नाम का सत्संग किया गया एवं प्रसाद वितरण किया गया।साथ ही इस अवसर पर सूजान देसर गोचर भूमि में पौधारोपण कार्यक्रम किया गया। विभिन्न प्रकार के छायादार, फूलदार पौधारोपण किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम में अभिषेक गुप्ता, उषा गुप्ता, हिमांशु किराडू, बसंत किराडू, मयंक गहलोत, अनिल स्वामी, वैभव गुप्ता, हिमांशी गुप्ता, बालमुकुंद, मीना अग्रवाल, गोविंद अग्रवाल व अन्य सदस्य उपस्थित रहे।
 गुरु अर्जुन दास के आर्शीवाद वचन में  गुरु महिमा का वर्णन “जानिए कौन थे
हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद शुभ माना जाता है। यह हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस तिथि पर महाभारत के रचयिता महान ऋषि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, जिसके चलते इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। कहते हैं ये वही दिन है जिस दिन हिंदुओं के पहले गुरु वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। इनके पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था। वेदव्यास जी को बचपन से ही अध्यात्म में काफी रुचि थी। उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की जिसके लिए उन्होंने वन में जाकर तपस्या करने की मांग की। लेकिन उनकी माता ने इस इच्छा को नहीं माना।
महर्षि वेदव्यास ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया और अपनी बात को मनवा लिया। लेकिन उनकी माता ने आज्ञा देते हुए कहा की जब भी घर का ध्यान आए तो वापस लौट आना। इसके बाद वेदव्यास जी तपस्या हेतु वन में चले गए और वहां जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की।
इस तपस्या के पुण्य से उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। इसके बाद वेदव्यास जी ने चारों वेदों का विस्तार किया। साथ ही महाभारत, अठारह महापुराणों और ब्रह्मास्त्र की रचना की। इसी के साथ उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हुआ। ऐसी मान्यता है कि किसी न किसी रूप में महर्षि वेदव्यास आज भी हमारे बीच में उपस्थित हैं। इसलिए सनातन धर्म में वेदव्यास जी को भगवान के रूप में पूजा जाता है और गुरु पूर्णिमा पर इनकी विधि विधान पूजा की जाती है। गुरु कृपा  आशीर्वाद से सभी कुछ संभव है आप सभी पहले गुरु रुप में अपने माता-पिता की ही पूजा करें।”

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