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बीकानेर,चैक बाउंस के मामले में न्यायालय ने एक रोचक फैसला सुनाया है। इस केस में लेन-देन तो प्रमाणित हो गया लेकिन बैंक और परिवादी की लापरवाही के कारण चैक बाउंस होना ही नियमानुसार प्रमाणित नहीं हो पाया। इस पर न्यायालय ने मुकेश मोदी को दोषमुक्त कर दिया है। दरअसल, मामला संजय कंसारा बनाम मुकेश मोदी से जुड़ा है। संजय ने भीनासर निवासी मुकेश मोदी के खिलाफ 2017 में चैक बाउंस का केस लगाया था। आरोप था कि मुकेश ने दिसंबर 2015 में 65000 रूपए संजय से उधार लिए। 15-20 दिन बाद 20 हजार रूपए का पेमेंट करने हेतु चैक प्रदान किया। वह चैक अनादरित हो गया। *मामले में मुकेश मोदी की तरफ से एडवोकेट अनिल सोनी ने पैरवी की।* न्यायालय के समक्ष लेन-देन, नोटिस भेजना, चैक देना आदि तो साबित हो गया, लेकिन परिवादी चैक बाउंस होना साबित ही नहीं कर पाया। दरअसल, बैंक द्वारा मिले रिटर्न मेमो में बैंक की मुहर नहीं लगी थी। ऐसे में बैंक मैनेजर के हस्ताक्षर भी प्रमाणित नहीं माने गए। इस तकनीकी आधार पर न्यायालय ने चैक अनादरित यानी बाउंस होना ही प्रमाणित नहीं माना। हालांकि परिवादी द्वारा तत्कालीन बैंक मैनेजर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर रिटर्न मेमो पर हुए हस्ताक्षर को प्रमाणित किया जा सकता था। मगर परिवादी पक्ष की ओर से बैंक मैनेजर को तलब करने की अर्जी ही नहीं लगाई गई। एडवोकेट अनिल सोनी ने बताया कि चैक अनादरण के मामलों में चैक अनादरण होना साबित करने का भार परिवादी पर होता है।

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