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बीकानेर.शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं.ये बातें नोबल पुरस्कार विजेता नेल्सन मंडेला ने कही थी. लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारें और नीति निर्धारक इस बात को भूल गए हैं. बीकानेर स्थित प्रदेश के दूसरे तकनीकी विश्वविद्यालय में दिन-ब-दिन खराब हो रहे हालात सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े करता है.

दो बार हुई स्थापना: इस विश्वविद्यालय की स्थापना पिछली कांग्रेस सरकार के समय में अंतिम साल में हुई थी और पहले कुलपति के रूप में प्रख्यात वैज्ञानिक एसपी व्यास को नियुक्त किया गया था. लेकिन बाद में भाजपा सरकार ने आते ही इसे बंद कर दिया था. लेकिन भाजपा सरकार के कार्यकाल में बीकानेर के लोगों ने इसको लेकर आंदोलन किया. ऐसे में 6 साल बाद दोबारा इसकी स्थापना हुई.

खुद की बिल्डिंग भी नहीं: वहीं, 2017 में पिछली भाजपा सरकार के समय में दोबारा स्थापित किए गए इस विश्वविद्यालय के हालात किस कदर खराब हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 6 साल में दो कुलपति का कार्यकाल पूरा हो गया. लेकिन आज तक विश्वविद्यालय खुद की बिल्डिंग तक नहीं बना पाया. जबकि पिछली भाजपा सरकार के समय नगर विकास न्यास ने इस विश्वविद्यालय को भूमि का आवंटन भी कर दिया था.अधीन कॉलेज की बिल्डिंग में विवि का संचालन: बीकानेर के यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलेज एंड टेक्नोलॉजी जो कि पूर्व में कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के नाम से संचालित हुआ करता था, उसी कॉलेज की बिल्डिंग में इस विश्वविद्यालय का संचालन हो रहा है. वहीं, पिछले दिनों नगर विकास न्यास ने विश्वविद्यालय प्रशासन को आवंटित भूमि पर निर्माण कार्य शुरू नहीं करने पर आवंटित भूमि को निरस्त करने का पत्र भेजा था. जिसके बाद आनन-फानन में विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसको लेकर नगर विकास न्यास के साथ पत्र व्यवहार शुरू किया.विवि के अधीन 42 कॉलेज: प्रदेश के तकरीबन 12 जिलों के 42 इंजीनियरिंग कॉलेज विश्वविद्यालय के अधीन हैं. जहां करीब 16000 से ज्यादा विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय से संबद्ध है. लेकिन विश्वविद्यालय के हालात किस कदर खराब है कि परीक्षाओं को समय पर कराने के लिए भी विद्यार्थियों को लंबे समय तक आंदोलन करना पड़ा. खैर, पिछले साल हुआ आंदोलन फिर से हो सकता है. बावजूद इसके परीक्षाओं के शेड्यूल में देरी हो रही है. जिसका सबसे बड़ा कारण विश्वविद्यालय में पर्याप्त संख्या में खुद का स्टाफ न होना है.

बेहतर आउटपुट की उम्मीद बेमानी: सामाजिक व शिक्षण क्षेत्र से जुड़े गजेन्द्र सिंह राठौड़ कहते हैं कि अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं. यही कारण है कि इस विश्वविद्यालय के हालातों को देखते हुए अब अभिभावक दूसरे संस्थानों की ओर रुख करने को मजबूत हैं. उन्होंन कहा कि यहां विश्वविद्यालय तो खोल दिया गया, लेकिन आज भी इसके खुलने के औचित्य पर सवाल खड़े होते हैं.

स्टाफ भी परेशान: कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी इस विश्वविद्यालय से संबद्ध है. अब कॉलेज के शैक्षणिक स्टाफ की न तो वेतन वृद्धि मिल रही है और न ही अन्य परिलाभ. जबकि पढ़ाने की जिम्मेदारी के अलावा उन्हें अन्य जिम्मेदारियां भी मिली हुई है. ऐसे में कहीं न कहीं बच्चों की पढ़ाई तो प्रभावित होगी ही. हालांकि, कैमरे के सामने कॉलेज के स्टाफ ने बात करने से मना कर दिया. विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलसचिव अरुण प्रकाश शर्मा ने कहा कि उन्होंने अभी कार्यभार संभाला है. ऐसे में वो अभी व्यवस्थाओं को देख रहे हैं.

साथ ही उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि यहां कई तरह की परेशानियां हैं. जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. जिसे वो दूर करने की कोशिश भी कर रहे हैं. वहीं, विश्वविद्यलाय की स्थापना के बाद से अभी तक दीक्षांत समारोह का आयोजन तक नहीं हुआ है. लेकिन अब फरवरी से मार्च के बीच इसके आयोजन की योजना बन रही है. हालांकि इसको लेकर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

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