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बीकानेर,मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों 543 थानों में स्वागत कक्ष का लोकार्पण किया और कहा कि ये स्वागत कक्ष पुलिसवालों के लिए सही व शालीन व्यवहार करने का संदेश हैं। सभी जानते हैं कि थानों में शिकायत लेकर जाने पर कैसा व्यवहार होता है। लोग शिक्षित हो रहे हैं और अपने अधिकारों 2918 के बारे में भी जागरूक हो रहे हैं। फिर भी, पुलिस थाने में होने वाले व्यवहार को लेकर लोगों के मन में अब भी डर कायम है। लोगों को लगता है कि किसी की सिफारिश लेकर जाएंगे या किसी से कहलवा देंगे, तो पुलिस अच्छी तरह से सुनवाई करेगी, नहीं तो टरका देगी। पुलिस महकमे और आमजन को समझना होगा कि इन स्वागत कक्षों को बनाने के पीछे राज्य सरकार की क्या सोच है। मुख्यमंत्री गहलोत ने तीन वर्ष पूरे करने के अवसर पर लोकार्पण एवं शिलान्यास कार्यक्रम में स्पष्ट किया कि स्वागत कक्ष बनाने के पीछे सरकार का मकसद है कि थानों में शिकायत लेकर आने वाले व्यक्ति के साथ सही व्यवहार हो। उन्होंने पुलिस के व्यवहार पर चिंता भी जताई। सरकार ने पुलिस को शिकायतकर्ता से सही तरीके के साथ पेश आने का संदेश दिया है। स्वागत कक्ष चाहे होटल का हो, बैंक का हो या किसी भी प्रतिष्ठान का, आने वाले को विश्वास दिलाता है कि कोई हल जरूर मिल सकता है। बहरहाल, पुलिस का यह पक्ष भी बहुत मजबूत लगता है कि थानों में दर्ज करवाई जाने वाली झूठी एफआइआर का क्या किया जाए। राज्य सरकार ने एफआइआर अनिवार्य रूप से दर्ज करने के निर्देश दिए हुए हैं। झूठे मुकदमों को लेकर चिंता भी जताई जा रही है। ब्लैकमेलिंग के लिए एफआइआर को हथियार बनाया जा रहा है। ऐसे माहौल में अकेले पुलिस के व्यवहार को दोषी ठहराया जाना भी गलत लगता है। सरकार के अनिवार्य एफआइआर दर्ज करने के आदेश के पीछे मकसद तो अच्छा है, लेकिन देखना होगा कि इसका लोग गलत फायदा नहीं उठाएं। अनिवार्य एफआइआर रजिस्ट्रेशन की नीति का एक अच्छा पहलू भी सामने आया है। पहले दुष्कर्म के करीब 33 प्रतिशत केस कोर्ट के इस्तगासे से दर्ज होते थे। अब वे कम होकर 15 प्रतिशत पर आ गए हैं। प्रदेश के 90 फीसदी थानों में स्वागत कक्ष तैयार हो गए हैं। बस, इंतजार है कि असल फरियादी की सुनवाई संवेदनशीलता से हो । ऐसा माहौल तैयार करने में पुलिस के साथ समाज का भी अहम रोल रहेगा।

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