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जयपुर। गहलोत सरकार पर फिर कुनबा बचाए रखने की चुनौती है। इस बार 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव है। इन चुनावों मे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर अपने और समर्थक दलों के विधायकों को साधने का दबाव है।

विधायक दल की सोमवार को हुई बैठक में बीटीपी समेत कई निर्दलीय विधायकों की गैरमौजूदगी ने सरकार की नींद उड़ा दी। यहां तक कि कुछ कांग्रेसी विधायक तक इस बैठक मेें नदारद रहे। गहलोत के लिए यह जरूर राहत की बात हो सकती है कि राष्ट्रपति चुनावों में व्हिप जारी नहीं होता। मतपत्र भी गुप्त रखा जाता है। लिहाजा सरकार पर किसी तरह का खतरा नहीं है।

विधायकों के बिखराव को रोके रखने का प्रयास करते-करते सरकार कितनी थक चुकी है। इस बात की झलक सोमवार को मुख्यमंत्री चेहरे पर साफ दिखाई दी। गहलोत ने कहा कि केन्द्र सरकार चाहती तो राष्ट्रपति चुनावों की नौबत ही नहीं आती। उनका कहना था कि मोदी सरकार यदि विपक्षी दलों के साथ संवाद करती तो उसके सार्थक परिणाम आते।

सरकार और विपक्षी दलों के आपसी तालमेल से राष्ट्रपति का चुनाव होता तो इस पद की गरिमा और बढ़ती। जेएलएन रोड स्थित एक होटल में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के साथ आयोजित संवाददाता सम्मेलन में गहलोत ने इस बात पर गहरी हताशा व्यक्त की कि केन्द्र की सरकार यदि विपक्षी दलों को विश्वास में लेकर आदिवासी उम्मीदवार उतारती तो देश को यह चुनाव नहीं झेलना पड़ता। हालांकि अब तक 15 में से एक दफा ही राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध हुआ है।

बीटीपी छोड़ कई कांग्रेसी भी नदारद विपक्ष के उम्मीदवार के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए आयोजित बैठक में बीटीपी के दोनों विधायक गैरमौजूद रहे। मुख्यमंत्री के भरोसेमंद माने जाने वाले संयम लोढ़ा समेत ज्यादातर निर्दलीय विधायकों की गैरमौजूदगी ने पार्टी नेताओं की नींद उड़ा दी। यहां तक कि कुछ कांग्रेसी विधायकों ने भी बैठक से दूरी बनाए रखी। जिस पर पार्टी देर रात तक सफाई देती रही।

राष्ट्रपति चुनाव से पहले ही तोडफ़ोड़ क्यों?

भाजपा से नाता तोड़ कर चुनाव मैदान में उतरे सिन्हा ने इसे विचारधार की लड़ाई बताई। वे इस बात पर आश्वस्त नजर आए कि राजस्थान में उन्हें बहुमत मिलेगा। गोवा में कांग्रेस टूटने के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। राष्ट्रपति चुनावों के ठीक पहले यह सब होने से जाहिर है भाजपा को फायदा होगा। सिन्हा ने कहा कि पहले इक्का-दुक्का लोग पार्टी बदलते थे, अब तो यह काम थोक में होने लगा है।

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