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बीकानेर में संतोषजनक मगर बाकी जिलों में 50 फीसदी भी नहीं हुआ काम। श्रीगंगानगर. सरहद की चौकसी के लिए आंखों को भले ही निगहबान की संज्ञा दी गई हो लेकिन सरहदी जिलों में ‘तीसरी आंख’ को निगहबान बनने अभी वक्त लगेगा भारत-पाक अंतराराष्ट्रीय सीमा से सटे बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर व श्रीगंगानगर तीन साल बीतने के बाद भी तीसरी आंख अर्थात सीसीटीवी कैमरे लगाने की रफ्तार बेहद सुस्त हैं। बीकानेर में जरूर संतोषजनक काम है, बाकी जिलों में तो पचास हुआ है फीसदी भी नहीं हुआ। योजना के अमय इन जिलों में 2018 में कैमरे लगाने का काम शुरू हुआ गलवार सुबह शौच के लिए गई था, लेकिन सरकार बदलने तथा सरहद पर तकनीक से ज्यादा ताकत पर भरोसा पश्चिमी राजस्थान की सभी सीमा चौकियों पर तकनीक की बजाय अभी ताकत यानी सीमा सुरक्षा बल के सुरक्षा प्रहरियों की गश्त पर भरोसा है हालांकि सीमा सुरक्षा बल की ओर से नाइट विजन गैजेट्स प्रहरियों को मुहैया करवाए हुए हैं। सीसुब सूत्रों की मानें तो कि सरहद चारों जिलों में सीसीटीवी के मेवेदनशील आपराधिक वारदात को सुलझाने बजट के अभाव में काम बंद होने के तथा अपराधों पर अंकुश लगाने में कारण विलंब होता गया। विदित रहे पुलिस को बड़ी मदद मिलेगी।सीमा क्षेत्र में कैमरे लगाने के काम को सरकार स्वयं ज्यादा महत्व नहीं देती क्योंकि हमारे सीमा क्षेत्र में हर कहीं प्रहरी तैनात है। सूत्रों ने बताया कि कैमरे वहां लगाए जाते हैं जहां मैन पॉवर तैनात नहीं हो। इसके अलावा समूचे सीमा क्षेत्र में फ्लड लाइट्स लगवाई जा चुकी है। सीसीटीवी कैमरे लगाने का कार्य फाइबर वायर बिछाने के काम में देरी “” के कारण प्रभावित हो रहा है जिस कंपनी को यह कार्य दिया गया था, उसने देरी की है। अब यह कार्य तेजी से करवाया जा रहा है। उम्मीद है, अक्टूबर तक कार्य पूरा हो जाएगा। -अशोक आसेरी, संयुक्त निदेशक, सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग, जैसलमेर

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