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बीकानेर,आज से कई सौ साल पहले राजस्थान में एक राजा की चाहत के कारण 350 से ज्यादा लोग मारे गए थे। ये वो लोग थे जो अपनी संपदा यानि कि पेड़ों को बचाने के लिए राजा के विरोध में खड़े हुए गए थे।क्या हुआ था

घटना 1730 की है। तारीख 11 सितंबर थी। जोधपुर के किले का निर्माण चल रहा था। राजा का आदेश था, इस किले के निर्माण को जल्द से जल्द खत्म किया जाए। सैकड़ों मजदूर-मिस्त्री इसके निर्माण में लगे थे। तब चूने के पत्थरों से निर्माण होता था। तेजी से निर्माण के लिए जरूरी था कि चूना पत्थर को जल्द से जल्द निर्माण के लिए तैयार किया जाए। उसके लिए ज्यादा लकड़ियों की आवश्यकता हुई, ताकि चूना-पत्थर को ज्यादा मात्रा में जलाया जा सके।

तब यहां के दीवान थे, गिरधर दास भंडारी। उन्होंने आदेश दिया कि खेजड़ली गांव से पेड़ों को काटकर लाया जाए। सैनिक, मजदूरों को लेकर पेड़ काटने के लिए चले गए। यहां हो गया विरोध। गांव की एक अमृता नाम की महिला सैनिकों के सामने खड़ी हो गई। बोली कि खेजड़ी का पेड़ बिश्नोई समाज के लिए पवित्र है, इसलिए वो उसे काटने नहीं देगी।

सैनिक पेड़ काटने की जिद पर अड़ गए और महिला अपनी जिद पर अड़ी रही। गुस्साए सैनिकों ने पेड़ से पहले महिला को ही काट दिया। इस घटना के बाद बवाल मच गया और पूरा गांव विरोध में उतर गया। सैनिक गांव वालों को मारने लगे। इसके बाद भी विरोध नहीं थमा। 350 से ज्यादा लोगों की जब हत्या कर दी गई, तब जाकर राजा को पछतावा हुआ और उन्होंने सैनिकों को वापस लौटने का आदेश दिया।

इसी की याद में मनाया जाता है राष्ट्रीय वन शहीद दिवस

इसी घटना की याद में आज के दिन 11 सितंबर भारत में राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है। जंगलों और वन्य जीवों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों के सम्मान में राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है।

 

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