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बीकानेर। शहर की सबसे विशाल होलिका का दहन होता है साले की होली पर। यहां की होली का एक रोचक परंपरा से करीब 150 वर्ष पुराना संबंध है। यहां जब तक गोदोजी नहीं पहुंचते होलिका दहन नहीं होता। दरअसल गोदोजी को होलिका का प्रेमी माना जाता है।बीकानेर में जिन्हें गोदोजी के नाम से पुकारा जाता है उन्हें फलौदी में इलोजी के नाम से जाना जाता है। गोदोजी की प्रतिमा को लेकर पहुंचते हैं गंदडिय़ा जोशी, उनके साथ होते है छंगाणी, मोहता, हर्ष व्यास और मूधांडा सेवग। यहां पहुंचकर गोदोजी अपनी होलिका को अग्नि में जलता देख विलाप करते हैं।होलाष्टक शुरू होते ही मरुनायक मंदिर में गोदोजी की प्रतिमा को निकालकर उनकी पूजा शुरू की जाती है, जो धुलंडी के दिन तक चलती है। इसके बाद वापस उस प्रतिमा को कमरे में बंद कर दिया जाता है। मरुनायक मंदिर ट्रस्ट के गोपाल बताते हैं कि गोदोजी की प्रतिमा को लेकर गेर के रूप में पांच जातियों के लोग साले की होली पहुंचते हैं।
गोदोजी और होलिका के बारे में यह है किवदंती
गोदोजी को होलिका का प्रेमी बताया गया है। बताया जाता है कि होलिका दहन के बाद उसका प्रेमी घटना पर विलाप करते-करते अपनी सुध-बुध खो बैठता है। होली मंगलाने के समय मरुनायक मंदिर से प्रतिमा को गंदडिय़ा जोशियां के कालाणी जोशी अपनी गली तक ले जाते हैं। वहां से सेवग जाति द्वारा मोहता जाति के लोगों को बुलाया जाता है।
मोहता जाति के लोग बाहर आकर गुलाल लगा जोशियों को स्वागत करते हैं। इस दौरान छंगाणी जाति के लोग भी वहां पहुंच जाते हैं। यहां से तीनों जातियों के लोग हर्षों के चौक पहुंचकर उनको साथ लेकर रत्ताणी व्यासों के चौक पहुंचते हैं। यहां पहुंचकर वे होली गीत गाते है और इस दौरान सूर्यवंशी भोजक जाति के लोगों को साथ लेकर कोकड़ी बाग, सदाफते, फूंभड़ों के चौक से झंवरों का चौक होते हुए साले की होली पहुंचते हैं। साले की होली पर होलिका दहन के बाद ये अपने अपने घरों की ओर लौट जाते हैं।
अब गेर का रास्ता कर दिया छोटा
पहले रत्ताणी व्यासों के चौक से बारह गुवाड़ होते हुए गेर साले की होली पहुंचती थी, लेकिन बीते 20 वर्षों में इस गेर का रास्ता छोटा कर दिया गया है। अब रत्ताणी व्यासों के चौक से गेर सीधे ही साले की होली पहुंचकर होलिका दहन करवाती है।
होलिका के दहन के बाद धुलंडी के दिन फिर पहुंचते है
होलिका के दहन के बाद धुलंडी के दिन गोदोजी की प्रतिमा को लेकर फिर पांच जातियों के लोग साले की होली पहुंचते हैं। यहां पर होलिका दहन के बाद भस्मी को गोदोजी के सिर पर भस्मी लगाते हैं। फिर गेर के रूप में वे शहर के कई मोहल्लों में घूमते हुए वापस मरुनायक मंदिर पहुंचते है और फिर प्रतिमा को ताले में बंद कर दिया जाता है।

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