बीकानेर। श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ श्री संघ द्वारा आयोजित चातुर्मासिक व्याख्यानमाला में रांगड़ी चौक स्थित पौषधशाला में साध्वी सौम्यप्रभा ने प्रत्याख्यान, जीव विचार व कर्म बंधन के बारे में जानकारी दी। साध्वी सौम्यप्रभा ने आठ कर्मों के बारे में बताया कि मोहनीय कर्म सबसे बड़ा होता है तथा आयुष्य कर्म जीवन में एक बार ही बनता है। उन्होंने कहा कि पुण्य से कमाया धन धर्म व पुण्य कार्यों में तथा पाप से कमाया गया धन पापकर्मों में ही लगता है। हर पल हम कुछ न कुछ कर्म का बंधन करते रहते हैं। पाप-पुण्य का बैलेंस बराबर होगा तभी आत्मा का उत्थान होगा। साध्वीश्री ने कहा कि मंदिर में जाकर भी जो राग-द्वेष करता है उसकी पूजा-आराधना सफल नहीं हो सकती।
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