बीकानेर/ सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट बीकानेर के तत्वावधान में राजस्थानी भाषा के प्रख्यात विद्वान ठाकुर राम सिंह तंंवर एवं सूर्यकरण पारीक की 122वीं जयंती के अवसर पर शुक्रवार को उनके साहित्यिक अवदान पर केंद्रित विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी की अध्यक्षता व्यंग्यकार-संपादक डॉ.अजय जोशी ने की , कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार कवि -कथाकार राजेन्द्र जोशी थे , तथा विशिष्ट अतिथि राजस्थानी साहित्यकार कमल रंगा रहे। मुख्य वक्ता राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व सचिव पृथ्वीराज रतनू थे।
मुख्य अतिथि कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि ठाकुर रामसिंह जी एवं सूर्यकरण पारीक का राजस्थानी साहित्य, इतिहास एवं संस्कृति के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा है। ठाकुर रामसिंह जी ने पहले अखिल भारतीय राजस्थानी साहित्य सम्मेलन दिनाजपुर में अध्यक्षता करते हुए कहां था कि राजस्थान के नाम में ही अद्भुत जादू है, राजस्थान-राजस्थानी का नाम सुनते ही हिंदुस्तान के लोग स्वागत को आतुर हो जाते हैं।,
जोशी ने कहा कि ऐसे राजस्थानी भाषा के सपूत ठाकुर रामसिंह जी का जन्म 2 फरवरी 1902 को भवाद में हुआ था उन्होंने नोबल स्कूल, डूंगर कॉलेज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की। आजादी के बाद राजस्थानी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए तीन महानुभाव ने सामूहिक रूप से प्रचार-प्रसार किया जिसमें ठाकुर रामसिंह प्रोफेसर नरोत्तम दास स्वामी और सूर्यकरण पारीक को सदैव याद किया जाएगा ,जोशी ने कहा कि इन तीनों की तिकड़ी राजस्थानी जगत में नेहरू- पटेल- गांधी की भांति मानी जाती थी , हमारे लिए यह गर्व की बात है कि पहले अखिल भारतीय राजस्थानी साहित्य सम्मेलन दिनाजपुर में ठाकुर रामसिंह जी ने 44 पृष्ठ का अध्यक्षीय भाषण राजस्थानी की एकरूपता एवं सर्व सम्मती का अधिकारिक रुप से मान्यता की आधारशिला मानी जाती है।
मुख्य वक्ता पृथ्वीराज रतनू ने कहा कि राजस्थान जहां एक और वीरभूमि है वहीं भारतीय संस्कृति सभ्यता एवं धर्म का प्रतीक है, ठाकुर रामसिंह जी ने कहा राजस्थान विविध रंगों में प्रकट होता हुआ यहां प्रकृति माता स्वयं त्याग तप, स्वतंत्रता, स्वाभिमान एवं अटल संकल्प का पाठ पढ़ाती है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भी ऐसे वीर प्रदेश की वीर भाषा है ।
विशिष्ट अतिथि साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी का साहित्य अमर साहित्य है ,ठाकुर राम सिंह जी और सूर्यकरण पारीक ने बड़े-बड़े महापुरुषों , विद्वानों और बड़े राजनेताओं ने भी राजस्थानी की सदैव प्रशंसा की है ,ठाकुर रामसिंह जी ने राजस्थानी नव युवकों से आह्वान किया कि मातृभाषा के विकास और सफलता आपके कंधों पर है वह बात आज भी सच है कि मातृभाषा की अगर सबसे ज्यादा जरूरत है तो युवाओं को है उन्होंने भी यह उम्मीद की थी कि युवाओं को राजस्थानी मातृभाषा का झंडा आगे बढ़ाना चाहिए ।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डाॅ.अजय जोशी ने कहा की भारत सरकार को राजस्थानी भाषा का इतिहास समझते हैं तुरंत संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर राजस्थानी भाषा को मान्यता देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें जरूरत है कि हमारे राजस्थानी विद्वानों द्वारा राजस्थानी मान्यता के लिए किए गए कार्यों का ऐतिहासिक दस्तावेज संकलित कर भारत सरकार को मान्यता के लिए पुरजोर शब्दों में आग्रह किया जाए ,उन्होंने कहा राजस्थान वीरभूमि है विद्वानों की भूमि है और राजस्थानी भाषा को प्यार करने वालों की भूमि है। कार्यक्रम के प्रारंभ में संयोजकीय व्यक्तव्य देते हुए साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा साहित्यकार किसी वर्ग विशेष के नहीं होते बल्कि वे सदैव विद्वान महापुरुष होते हैं, उनके द्वारा राजस्थानी भाषा के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर जो काम किया गया वह आज भी प्रासंगिक है, लोकप्रिय है और राजस्थानी भाषा की मान्यता के पक्ष में हमारे इतिहास में दर्ज है।
कार्यक्रम में लेखक अब्दुल शकूर बीकाणवी ने कहा कि ठा. रामसिंह जी राजस्थानी भाषा साहित्य और संस्कृति के महान पुरोधा थे, जिन्होंने अपनी का कृतियों से मायड़ भासा राजस्थानी को समृद्ध किया । कादरी ने कहा कि ठा. रामसिंह जी अंग्रेजी के प्रकांड विद्वान थे मगर उन्होंने अपनी मायड़ भासा राजस्थानी को अपने सृजन का माध्यम बनाया ।
कार्यक्रम में कवि जुगल पुरोहित ने राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के लिए ठाकुर रामसिंह जी एवं सूर्यकरण पारीक द्वारा किए गए उल्लेखनीय काम को विस्तार से प्रस्तुत किया एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से पत्र- वाचन किया । कवि कमल किशोर पारीक ने संगोष्ठी का संचालन किया।
कार्यक्रम में गणेश बिरवाल ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया ।