
बीकानेर,जाम्भाणी साहित्य अकादमी के संरक्षक,परम गोभक्त, प्रसिद्ध कथा वाचक ब्रह्मलीन स्वामी राजेंद्रानंदजी महाराज हरिद्वार की श्रद्धांजलि सभा में बोलते हुए अकादमी की अध्यक्षा प्रो (डॉ) इंद्रा विश्नोई ने कहा कि धर्म की संस्थापना के लिए भगवान स्वयं अवतार लेते हैं और कभी-कभी अपनी परिकर को भी भेज देते हैं। ऐसे ही एक परिकर को भगवान ने परम पूज्य ब्रह्मलीन स्वामी राजेंद्रानंदजी महाराज के रुप में इस धरती पर भेजा था और अपना कार्य करवाकर उन्हें वापिस अपने धाम में बुला लिया। अपने चार दशकों के धर्म-प्रचार के जीवन में उन्होंने कभी विश्राम नहीं लिया। अनवरत उनकी साधना जारी रही यहां तक कि नींद में भी धर्म रक्षा का ही चिंतन करते थे। लगभग एक दशक कथा करने के बाद उन्हें लगा की अब मुझे गोकथा करनी चाहिए क्योंकि गायों की करुण दशा उनसे देखी नहीं गई और संत का नवनीत हृदय गायों के घोर संताप से द्रवित हो गया और उन्होंने अपना शेष जीवन गोमाता को समर्पित कर दिया। जाम्भाणी साहित्य के प्रति उनकी निष्ठा, प्रतिबद्धता और आस्था बहुत गहरी थी। उनकी कथाएं जाम्भाणी साहित्य को आधार बनाकर ही होती थी। गुरु जाम्भोजी की वेदमयी सबदवाणी की वे अपनी विलक्षण शैली में उत्कृष्ट व्याख्या करते थे।
सभा में अपने भावांजलि प्रदान करते हुए मुकाम पीठाधीश्वर स्वामी रामानंदजी आचार्य ने कहा कि स्वामी राजेन्द्रानंदजी ने गोसेवा को जन आंदोलन बना दिया,उनका दिल गायों के ही धड़कता था,अपने अल्प जीवनकाल में ही वे गोसेवा के अप्रतिम उदाहरण बन गए । अकादमी के पूर्व अध्यक्ष स्वामी कृष्णानंदजी आचार्य ने कहा कि स्वामीजी विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे, उनकी कथा की सरस शैली से आकर्षित होकर लाखों लोग प्रभावित हुए और उन्होंने गोसेवा की प्रेरणा प्राप्त की। अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ स्वामी सच्चिदानंदजी आचार्य ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा की उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले की धामपुर तहसील के गांव रैणी भगवानपुर में श्री चून्नूसिंह पूनियां के घर हुआ,उनकी माताजी का नाम कांतिदेवी था। वे 12 वर्ष की अवस्था में साधु बन गए थे जीवन के अंतिम समय 58 वर्ष की अवस्था तक कथा करते हुए गोसेवा और धर्म जागरण करते रहे। उनके धर्म प्रचार का क्षेत्र बहुत व्यापक था, वे उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में कथाएं करते थे। स्वामीजी के उत्तराधिकारी स्वामी प्रणवानंदजी महाराज ने कहा की उनकी कथा की सरिता को सूखने नहीं दिया जाएगा, उनके अनेक विद्वान शिष्य हैं जो कथा और गोसेवा के कार्य को आगे बढ़ाएंगे। गुरुजी के आदर्शों पर चलकर हम उनके अधूरे कार्यों को पूरा करेंगे।
श्रद्धांजलि सभा में आचार्य अखिलेश मुनि,देवेंद्र बिश्नोई आईपीएस, राजाराम धारणियां उपाध्यक्ष अकादमी, डॉ बनवारीलाल सहू, डॉ भंवरलाल बिश्नोई,प्रदीप बैनीवाल, अमरचंद दिलोईया,डॉ कृष्णलाल बिश्नोई, प्रदीप बिश्नोई प्रधान, डॉ लालचंद बिश्नोई,डॉ महेश धायल, पूनमचंद पंवार, मोहन खिलेरी,एडवोकेट आत्माराम पूनियां, एडवोकेट संदीप धारणियां, रामसिंह कसवां, ओमप्रकाश बिश्नोई, अरविंद गोदारा, डॉ विपलेश भादू, डॉ हरिराम सिहाग, विनोद काकड़ आदि ने भी अपनी भावांजलि प्रदान की। ज़ूम ऐप और अकादमी के फेसबुक पेज पर इस श्रद्धांजलि सभा का सजीव प्रसारण किया गया।