
बीकानेर,बिश्नोई समाज और साहित्य प्रेमियों ने जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी कृष्णानंद आचार्य का 75वां जन्मदिवस हीरक जयंती महोत्सव शुक्रवार 8 अगस्त को ऋषिकेश में धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर बोलते हुए श्रीमहंत शिवदास शास्त्री रुड़कली ने कहा कि साहित्य किसी समाज का दर्पण होता है, जैसे दर्पण में अपना मुख दर्शन किया जाता है वैसे ही समाज के साहित्य में उस समाज का दर्शन होता है। बिश्नोई समाज के साहित्य को जाम्भाणी साहित्य कहा जाता है। यह पिछली पांच शताब्दियों में लिखा गया है, इसमें बिश्नोई पंथ के संस्थापक श्री जम्भेश्वर जी की वाणी और उनके हजूरी तथा परवर्ती जाम्भाणी संतों की वाणियां संकलित है। जाम्भाणी साहित्य केवल राजस्थानी ही नहीं अपितु भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि है। स्वामी कृष्णानंद आचार्य ने अपना पूरा जीवन इस साहित्य के संरक्षण, संवर्धन, संपादन प्रकाशन में समर्पित कर दिया। आचार्य जी का जीवन हम सबके लिए प्रेरणा पुंज है।पहले इन्होंने व्यक्तिगत प्रयास और फिर जाम्भाणी साहित्य अकादमी की स्थापना करके संस्थागत स्तर पर कार्य किया है।मेहराणा धोरा (पंजाब) के महंत स्वामी मनमोहनदास शास्त्री ने अपने संबोधन में कहा कि आचार्य ने केवल साहित्य लिखा ही नहीं बल्कि कथाओं के माध्यम से इसका व्यापक प्रचार भी किया है,इनकी वक्तृत्व शैली अद्भुत रही है जो वक्ताओं को तुरंत प्रभावित करती है। इनका सरल,सहज और सौम्य स्वभाव सबको आकर्षित करता है।डॉ सच्चिदानंद आचार्य ने कहा कि जाम्भाणी साहित्य गुरु जम्भेश्वर जी की पर्यावरणीय चेतना से ओतप्रोत होने के कारण सर्वहितकारी तो ही है साथ में वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण की विश्वव्यापी विकराल समस्या से निजात पाने का समाधान भी बताता है। आचार्यजी ने ऐसे साहित्य का प्रचार-प्रसार करके महान् पुण्य का कार्य किया है। अकादमी के उपाध्यक्ष राजाराम धारणियां ने बताया कि इन्होंने अब तक लगभग 25 पुस्तकों का लेखन और संपादक किया है। इनकी पुस्तकें इतनी लोकप्रिय हुई कि उनके अनेक संस्करण छापने पड़े हैं। ये अब भी ऋषिकेश में गंगा के तट पर स्थित अपनी कुटिया में साहित्य साधना कर रहे हैं और निरंतर जारी इस साधना के द्वारा ये साहित्य का अनुसंधान करके इससे निकले नवनीत को जिज्ञासुओं में वितरण करते हैं। ऐसे तपस्वी संत का सांनिध्य प्राप्त करके समस्त साहित्य प्रेमी धन्य हो गए हैं।इस समारोह को स्वामी जयरामदास, स्वामी प्रणवानंद, स्वामी मोहनदास, स्वामी रामेश्वरानंद स्वामी विष्णुदयाल, स्वामी श्रवणदास, स्वामी राजनप्रकाश,डॉ बाबूराम,जालाराम बिश्नोई, हुकमाराम लोहमरोड़, बाबूराम भादू,मोहनलाल बीडीओ, डॉ बनवारीलाल सहू, विनोद धारणियां, डॉ महेश,अमरचंद दिलोईया,कुंवर सुरेन्द्र सिंह, प्रदीप बिश्नोई,मनोहरलाल गोदारा, मोखराम धारणियां, हरिराम खीचड़, आत्माराम पूनियां, डॉ हरिराम, जगदीश सरपंच, डॉ कृपाराम, पृथ्वी बैनीवाल, अनिल भाम्भू गोरधनराम बांगड़वा, केहराराम सूबेदार,मोहन खिलेरी, अरविंद गोदारा, पूनम पंवार, रामसिंह कसवां, मास्टर रंगलाल, विष्णु थापन, मास्टर सहीराम, रामस्वरूप खीचड़, हनुमान धायल, विनोद काकड़ आदि वक्ताओं ने सभा को संबोधित किया और आचार्य जी को उनकी हीरक जयंती की शुभकामनाएं देते इनके स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की मंगल कामना की। पधारे हुए समस्त विद्वजनों का अभिनंदन ओर स्वागत अकादमी महासचिव विनोद जम्भदास ने किया।इस अवसर पर आचार्य जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित एक अभिनंदन ग्रंथ का भी लोकार्पण किया गया। इस ग्रंथ को डॉ बनवारीलाल सहू, डॉ सुरेन्द्र कुमार, डॉ छाया रानी, डॉ मनमोहन लटियाल, डॉ अनिल धारणियां, डॉ मोहन कड़वासरा और डॉ रामस्वरूप जंवर ने संपादित किया है। मंच संचालन डॉ सुरेन्द्र कुमार ने किया। इस अवसर पर देहरादून निवासी साहित्यकार राजेंद्र सिंह बिश्नोई एयर कोमोडोर को भी सम्मानित किया गया।